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टेबल लैंड!

सुबह तमाम, पंचगनी आसान, मेज़ जमीं, (table land) मेज़बान बनी, सुबह या शाम, समेट सकते हैं पूरी, आगाज़ भी अंजाम भी, एक ही जगह, न कोशिश, न वज़ह, फ़कत स्थिरता, समझिए, कुछ नहीं, आप! मूर्त हो रहिए, और चारों ओर सब बदलता देखिए इसमें "मैं" कहाँ? गर ये सवाल है? तो अफ़सोस! आप अहं हैं! आपको अपना ख़ासा वहम है! जमीन पर आइए! आप वहीं हैं, आप वही हैं!!

अनगिनत सच!

आज ये हाल है, बादल पूछ रहे हैं, आपका क्या सवाल है? क्या काया है, क्या माया है? हर लम्हा सौ का सवाया है! किस को बनना बोलें, किस को बिगड़ना? अनगिनत सच, एक साथ,  कोई किसी से भिड़ता नहीं है, न कोई चिढ़ता है! सब जानते हैं,  खुद से कोई कुछ नहीं है, जमीं से आसमाँ बनता है, पहाड़ से बादल, पेड़ से हवा, कौन सौ, कौन सवा, कीजिए "मैं" को हवा, पल बनिए, लम्हा चलिए, मर्ज़ी उस रास्ते निकलिए, जो है बस अभी है, या मौका फिर कहाँ, कभी है! आज़ाद हो जाइए, आबाद हो जाइए! Swati साथ at The Chirping Orchard Honestly in Mukteshwar.

मुमकिनियत!

बचपन में बड़ों के हाथ मनमारते, अब खुद की हद के ख़त्म होते हैं, खुद से जिद्द क्यों नहीं कर लेते, क्यों आप दुनिया को हज़म होते हैं! इतना भी एक रस्ते न चलिए, के खत्म हों पर खबर न हो?    अपने ही जख़्म हुए जाते हैं, क्यों यूँही ख़त्म हुए जाते हैं!    अपने ही आइनों से सब शिकायत है, क्यों खुद को ही ख़त्म हुए जाते हैं! नसीहतें तमाम कुछ न करने की, नेक इरादों के खत्म हुए जाते हैं! नेक नसीहतें आपके रस्ते आती हैं, और आप शराफ़त के खत्म होते हैं?   पहचाने रास्तों पर सफ़र नहीं होते, अपनी ही चाल के हम ख़त्म होते हैं हर मोड़ किसी से मिल लीजे, ज़िंदगी अजनबी है, संभल लीजे? आग़ाज़ कुछ नहीं ख़त्म होने की बात है, उनसे पूछिये जिनको सिर्फ दाल भात है!   बड़े हुए हाथ सहारा भी होते हैं, आप क्यों शक के ख़त्म हुए जाते हैं! ज़िन्दगी से शिकायत नहीं की जाती, अपने ही हाथों से खत्म क्यूँ होते हैं? सपने में तो आप के भी रंगी पंख होंगे, क्यों अपनी हकीकतों के ख़त्म होते हैं?

बादल अनलिमटेड़!

बादल , पागल , चले ज़मीन आसमान एक करने खाई का फ़रक लगे भरने , बेअक्ल या बेलगाम , सुरज की रोशनी को मुँह चिढाते , इतराते , इठलाते , भरमाते , नरमाते , पल - पल उम्मीदों को अजमाते , खड़े रहो कंचनजंघा अहम के साथ इस भरम में कि उंचाई विजय है , और बस एक छोटा सा टुकड़ा , जिसे न अहम है न वहम खोते - खोते होता हुआ , या फ़िर होते - होते खोता हुआ , आपकी झूठी सच्चाईयों को गह लेता है , दो पल के लिये ही सही , मोक्ष - एक पल का ही एहसास है , क्या आपके पास खालिस विश्वास है ?

प्यारे सवाल!

मुसाफ़िर अपने सफ़र पे निकल जाते हैं ,   काहे पुराना नाम - सामान लिये जाते हैं।। रास्ते जिंदगी के कभी खत्म नहीं होते , जो प्यार करते हैं उऩ्हें जख्म नहीं होते !! सब अपने रस्ते हैं मर्ज़ी के मोड़ गये , आप खामख़ां सोचते हैं छोड़ गये ! टुटे हुए वादों को क्यों संभाल रखते हैं ,  भूल गये शायद के नेक इरादे रखते हैं ! जब तक रास्ता एक है हमसफ़र है , पर अकेले है तो क्या कम सफ़र है ? मोहब्बत एक तरफ़ा रही तो क्यों परेशान है , चार दिन की लाईफ़ है , और सब मेहमान हैं ! मोहब्ब्त के बड़े सीधे - सच्चे कायदे हैं , दुकान खोल लीज़े जो नज़र में फ़ायदे हैं ! वक्त बदला , ईरादे बदले , अब आगे बड़े हैं , एक जगह आप अड़े हैं तो चिकने घड़े हैं , ये फ़रीब - ए - नज़र है या अना का असर है , आप ही वजह हैं और आप ही कसर हैं ! (टुटे दिलों और फ़रेबी मुश्किलों की देवदासिय आदतों की दास्तानों से उपजी)

अपने गिरेबान!

कहां रवि और कहां कवि एक अपनी ही आग में जलता है  , उसे क्या खबर कि  , उसी से जग चलता है ? दुसरा कहने से ड़रता है  , सीधी बात , घूमा - फ़िरा के  , चिंगारी पानी में लपेट के  , प्रवाह के वेग को शब्दॊं में समेट के  , और उम्मीद ये , उसकी आग दुसरों को जलायेगी  , चिंगारी एक दिन आग बनायेगी  ,    और वो अपने अहं की चट्टान चढ खुद की पीठ थपथपा कामयाबी अपने सर लेगा  ``````````````````````````````` और एक तरफ़ सुरज़ जो कल के , दू धदांत वाले गुमनाम बादल को भी गुज़रने देते हैं , चाहे वो उन्का मुंह काला कर के गुजरा हो शर्म से बादल ही पिघल जाते हैं  , और सावन के दिन आते हैं  , उन दिनों की ही  , कितने कवि रोटी खाते हैं और उनमें सुर बिठा  , कितने गले इतराते हैं और उस पर ये दावा  , जहां न पहुंचे रवि , वहां पहुंचे कवि ? मुर्खता या अंहकार  , कवि अंधेरों में अपनी रोटी सेंकते हैं  , चाहे वो खुद के हों , या दुनिया के और रवि अंधेरों को आज़ाद छोड़ता है अपने स...