मिल कर मन के मौसम बना रहे हैं, बादल ले कर आसमां आ रहे हैं, रंगों को कुदरत से छलका रहे हैं, ब्रशस्ट्रोक हवाओं के लहरा रहे हैं, कैनवास पल–पल बदल आ रहे हैं, ज़मीन पैरों तले पिघला रहे हैं, खड़े हैं जहां, वहीं बहे जा रहे हैं, मिल कर मन के मौसम बना रहे हैं, और वहीं हैं हम जहां जा रहे हैं! पहुंचे थे पहले पर अभी आ रहे हैं मूर्ख हैं जो वक्त से नापने जा रहे हैं, खर्च वही है सब जो कमा रहे हैं, दुनिया कहेगी के गंवा रहे हैं, और जागे हैं जब से जो मुस्करा रहे हैं!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।