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मन के मौसम!

  मिल कर मन के मौसम बना रहे हैं, बादल ले कर आसमां आ रहे हैं, रंगों को कुदरत से छलका रहे हैं, ब्रशस्ट्रोक हवाओं के लहरा रहे हैं, कैनवास पल–पल बदल आ रहे हैं, ज़मीन पैरों तले पिघला रहे हैं, खड़े हैं जहां, वहीं बहे जा रहे हैं, मिल कर मन के मौसम बना रहे हैं, और वहीं हैं हम जहां जा रहे हैं! पहुंचे थे पहले पर अभी आ रहे हैं मूर्ख हैं जो वक्त से नापने जा रहे हैं, खर्च वही है सब जो कमा रहे हैं, दुनिया कहेगी के गंवा रहे हैं, और जागे हैं जब से जो मुस्करा रहे हैं!

हकीकत की माया!

वो इंसान ही क्या जो इंसान न हो? वो भगवान ही क्या जिसका नाम लेते जुबां से लहुँ टपके? वो मज़हब ही क्या जो इंसानो के बीच फरक कर दे? वो इबादत कैसी जो किसी का रास्ता रोके? वो अक़ीदत क्या जो डर की जमीं से उपजी है? वो बंदगी क्या जो आँखे न खोल दे? वो शहादत क्या जो सिर्फ किसी का फरमान है? वो कुर्बानी क्या जो किसी के लिए की जाए? वो वकालत कैसी, जो ख़ुद ही फैसला कर ले? वो तक़रीर क्या जो तय रस्ते चले? वो तहरीर क्या जिससे आसमाँ न हिले? वो तालीम क्या जो इंक़लाब न सिखाये? वो उस्ताद क्या जो सवाली न बनाये? वो आज़ादी क्या जिसकी कोई जात हो? वो तहज़ीब क्या जिसमें लड़की श्राप हो? वो रौशनी क्या जो अंधेरो को घर न दे? वो हिम्मत क्या जो महज़ आप की राय है? वो ममता क्या जो मजहबी गाय है, बच्ची को ब्याहे है? वो मौका क्या जो कीमत वसूले? …… फिर भी सुना है, सब है, इंसान, भगवान्, मज़हब, इबादत, क्या मंशा और कब की आदत! अक़ीदत और बंदगी, तमाम मज़हबी गंदगी! शहादत ओ कुर्बानी, ज़ाती पसंद कहानी! वक़ालत, तहरीर, तक़रीर, झूठ के बाज़ार, खरीदोफरीद! तालीम और उस्ताद, आबाद बर्बाद! आज़ाद...