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सर्वे सन्तु भारतीय!

यकीन अलग थे, ज़मीं वही थी, ये किसी की चाल थी, या यही चलन है, अब? मैं, मैं क्यों नहीं रह सकता? सिर्फ इसलिए के आप, आप हो? किसी के बेटे, किसी के बाप हो? या सिर्फ एक क़ातिल तहज़ीब की छाँप हो? राम का नाम हो और, फन फैलाये सांप हो? और आप, और आप, आप भी, शरीफ़ हो, ख़ामोश हो, या गाय का दूध पी मदहोश हो? माँ कसम, क्या नशा है? ये कौनसे दर्द की दवा है? या माहौल है, हवा है? मानना है क्योंकि 'सरकार' ने कहा है? यानी, जो नहीं कहा है, आप आज़ाद हो गए, वहशियत के डर से? या इस यकीन से के ऊपर वाले के दरबार में, पीठ थपथपाई जाएगी, आपकी भी बारी आएगी। "प्रभु, आपका नाम ऊंचा किया, इसने सर नीचा किया, जब भीड़ ने जुनैद का तिया-पाँचा किया! शाबाश पुत्र, तुमने राम का नाम किया, तुम्हें स्वर्ग मिलेगा, 5 स्टार चलेगा!"? "और प्रभु, इन्होंने तो आप की लाज बचा ली, इन्होंने इंसानियत से ज्यादा मान आपका किया, पहलू और अख़लाक़ का काम तमाम किया, पूरे समय इनके ओठों पर एक ही नाम था, जय श्रीराम था, वाह, वाह, इन्हें तो प्रभु अपने वाम पक्ष में स्थान दीजिए, इनको यम का नाम दीजिए" ...

मौत की दुकानदारी

मौत ले लो मौत, जो ख़रीदे उसका भी भला, जो बेचे उसका भी भला, जो मरे उसको दफ़ना-जला! मौत सरकारी भी है और आतंकी भी, व्यापम भी है और उरी भी, भारत भी है और कश्मीरी भी, फांसी का फंदा है, किसी को धंद्या है! मौत एक बेनामी गाय है, ताकत के हाथों एक राय है! किसी के लिए खर्चा है, किसी के चाय की चर्चा है! किसी की मौत गुस्सा किसी की मौत जूनून किसी की मौत आतंक किसी की जूनून, कोई खुनी, कोई आतंकी कोई देशभक्त, किसी का मारना बहादुरी, किसी का कायरी, किसी को वीरगति, किसी को कुत्ते की किसी की मौत मज़हब किसी की जात किसी का बदला, किसी पर हमला...... ....... फिर भी हम इंसान हैं, जानवरो से अलग, कहने को बेहतर, लगे हर लम्हा इस धरती को करने में बदतर! तरक्की तहज़ीब मुबारक हो!

नील सलाम!

अफ़सोस तो बहुत है पर क्या होगा, मेरे होने को कोई तो वज़ा होगा? चराग़ नहीं बुझा रौशनी चली गयी, एक दरख़्त के नीचे जमीं चली गयी! वो क्या वज़न है जो पैरों को ज़मी करता है, कुछ खो गया आज बड़ी कमी करता है! आज उम्मीद बहुत उदास हो गयी, अज़नबी सी अपनी ही साँस हो गयी! किसी कोने में ज़िन्दगी के कितना वीराना है, खुद को भी तमाम कोशिश कर मिल न पाये! ....दिल रो दिया...कुछ मैंने भी खो दिया....! काला सच है हम सब ने रोहित को मारा, चला गया वो हम सब को कर के बेचारा!   एक दबी हुई चीख हम क्या समझेंगे, किसी ने हम को सांस लेने से कहाँ रोका! उम्मीदें आसमान होती हैं इंसान की, पर मर्ज़ी चल रही जात के पहलवान की!!

रोहित वेमुला - एक सोच

  मैं भी पूरा इंसान हूँ, आप भी? अगर होंगे तो समझ पाएंगे! बस गिनीतियों में सीमित है पहचान, ये क्या दौर है, ये क्या इंसान?? उम्मीदें खोयी है इरादे अब भी यहाँ हैं, सितारों के आगे और भी कोई ज़हाँ हैं!   ये कैसी अवस्था है, बड़ी बीमार व्यवस्था है! चुपचाप सर झुका रहिये तो आप इंसान हैं, सवाल उठाने वाले दो दिन के मेहमान हैं! ये कैसी मोहब्बत कि पंख नहीं देती, सितारों के आगे जहाँ और भी हैं  क्या आपकी कोई जाति है, या आपको मानवता आती है!? कितनी बीमार सोच है, की कोई पैदाइशी कम है!   एक ख़त, और कड़वे सच, बेबाक कितना, कितना बेबस! कड़वी लगी है तो सच जरूर होगी, उम्मीद है ज़हन में दर्ज़ ज़रूर होगी! (रोहित का खत एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, ये पड़ कर महसूस किया था, पर अब ये सच बन कर दुनिया के अलग अलग कोनों से विरोध प्रदर्शन की तस्वीर बन कर आ रहा है। उस खत और उस में जिन सच्चाइयों कि तरफ़ इशारा किया है उन्हीं से निकल कर ये अभिव्यक्ति बाहर आइ है।)

अखलाक का खून!

आत्मचिंतन, समुद्र-मंथन प्राचीन,  परंपराम, गौरव सहनशीलता, सहिष्णुता, वेद-पुराण,  ज्ञान-गुणज्ञान गीता का दर्शन समझ- संस्कृति शून्य की खोज दशमलव का विज्ञान भारत महान हाथी  के दाँत दिखाने वाले और खाने वाले नरभक्षी, वहशी इंसान सोच हथियार, समझ तलवार  जाति छोटी-बड़ी औरत पैरों में पड़ी गालियों में माँ-बहन का भूत, अहं हिंदू होने का या कमतरी का सबूत कपटी-धूर्त मंदिर में मूर्त पुजारी पहलवान सोने की खान चढावे को बढावा हिंदू को हिंदू का खून गाड़ा दूसरे का खून पानी कल की कहानी गाय माँ और नानी, मासूम जवानी,  गुस्से की निशानी मज़हब का ज़ुनून अखलाक का खून!