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नया साल, फ़िर वही मलाल!

जो पूछते हैं हमसे, साल कैसा था, सोचते हैं हम, ये सवाल कैसा था? उस गली में हो रहा कत्लेआम कैसा था? जो सुने नहीं उन चीखों का अंजाम कैसा था? जो लुट गए उनका सामान कैसा था? जो मिट गए उनका राम कैसा था? आपकी नफरतों के जो काबिल हैं, उनका ग़रेबाँ कैसा था? जो 'मंदिर वहीं बना' उसकी जमीं कैसी थी ओ आसमान कैसा था? अपने नहीं हैं जो उनका श्मशान कैसा था? या कब्रिस्तान कहिए? गाज़ा के बच्चों का अरमान कैसा था? अलेप्पो (हलब) में खंडहर कुर्दिस्तान कैसा था! न हंस पाएं उन बच्चियों का अफगानिस्तान कैसा था? मत पूछिए मुझसे के साल कैसा था, हाल कैसा है? जो "आंख ही से न टपका" वो मलाल कैसा है?  

देर-अंधेर

सुबह के फूल, शाम की धुल चमचमाती गाड़ियां नयी जैसी, बहुत सारे पानी की ऐसी की तैसी, गेंदे से सुसज्जित, पूजा युक्त गाडियाँ भक्तों के हाथों, सिग्नल तोडती हुई, "भगवान मालिक है" अपनी ही दुनिया है, उसमे 'नो एंट्री' कैसी? कहते है आज, बुरे पर अच्छे की जीत है! 'आज' पर इतना संगीन इलज़ाम तिलमिलाते 'आज' को दिलासा, यही रीत है, अब राम की लीला होगी, सीता की कौन सोचे, "एक चादर मैली सी" एक चाय की दुकान पर, टोपी लगाये, कूच हाल्फ़-पैंट टोपी लगाये, और चुस्की लेते, गाँधी(वाद) को तो पहले ही निपटा दिया अब कौन सा सच बाकी है, गुजरात गवाह है, आज सच बहुत खाकी है, टक-टक की लय पर थिरकते पाँव, चमकती रोशिनी, दुनिया रोशन, सबको एहसास है, अँधेरा है चिराग तले, वो जगह बकवास है और सुबह उठ कर देखता हूँ सड़कों पर कचरे का ढेर है (ईद के दूसरे दिन भी हैदराबाद में यही नज़ारा था, हम सब एक हैं!) सूअर हँस हँस कर कह रहे है शुक्र है मालिक! आज देर कहाँ, सिर्फ अंधेर है, दशहरा-दिवाली वगैरा आप को मुबारक हो! (नवरात्री के शो...