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नफ़रत के प्रकार !

नफ़रत का शिकार आप तब हैं जब आप भी नफ़रत करने लगें आप नफ़रत का शिकार हुए हैं? या नफ़रत के तलबगार हुए हैं? अगर आप भीड़ का हिस्सा बने तो सोचिए आपकी नफरत का माली कौन है? गुनाह हुए हैं तमाम आपके साथ, क्या आप किसी गुनाह के हथियार हुए हैं? चुप रहने से घुटन होती है, खुल कर हम कभी अपनी हैवानियत की बात नहीं करते। ज़ख्म ठीक भी हुए दर्द नहीं जाता, क्या आप बात करने को तैयार हुए हैं? धर्म और नीति राज बन कर आपको नफरती भक्त तो नहीं बना रही? नफ़रतों के दौर की कोई बात न करें, बस कहने को हम होशियार हुए हैं! कत्ल हुए मासूम किस वहशियत से, किस  हिदायत से इतने लाचार हुए हैं? धर्मगुरु भी हैं और राजनेता भी, जिम्मेदारी कोई क्यों नहीं लेता? मज़हब कम पड़े या इंसान सरचढे? जवाबदेही को सब बेकार हुए हैं!! अल्पसंख्यक क्यों हमेशा शिकार बनते हैं? जो कम है उसी को कमजोर करते हैं, उस्तरों के कैसे ये बाज़ार हुए हैं? बचपन हिंसा का शिकार हो तो उसका क्या असर होता है? बचपन के साथ कहाँ वक्त कुछ मिला, कौन से हैं खेल जो इंकार हुए हैं? हिंसा और नफरत हमें चोट ...

कुछ याद सा!

पास है मेरे पर खो गया है! क्यूँ आज ऐसा हो गया है!! दूर है पर महसूस करती हूँ! क्यों मैं ये अफसोस करती हूँ!! अपना था और अपना ही रहा! हक़ीकत, अब सपना सा रहा!! भूलने को तो कुछ भी नहीं! एक साथ था अब याद सा रहा!! आवाज़ अब भी मेरे कानों में है! फिर क्यों सोचूं क्यूँ गुम सा है!! मेरी हँसी थोड़ी अकेली पड़ गई! खिलखिलाहट का मज़ा कम सा है!! उम्मीद, हिम्मत, कोशिश सिखाई! बहुत है फ़िर भी ज़रा कम सा है!! मेरा बचपन ओ जवानी भी था! वो अक्सर मेरी कहानी सा था!! चल पड़ी हूँ अपने रास्तों पर मैं! हर मोड़ कुछ अकेलापन सा है!!