अपने लिखें #MeToo तो दर्द होता है, कुछ की आँखे खुली हैं, भट्टा सी? कहाँ रहते हैं मर्द दुनिया के? अपनों के साथ रहते रहते भूल जाते हैं, सब, अपने गरेबां को, उन हाथों को जो मचलते हैं, थे? जब आप मौका थे, और आपके हाथ, कंधे, कोहनी चौका? भीड़ में, आपकी आँखें झांक रही थीं, उपर से, और ताक रही थी, शर्म को बेशर्मी से, क्या करें फ़ुर्सत ही नहीं मिलती, ज़ेब की गरमी से, अपने हाथ कब तक होंगे जगन्नाथ? रगड़ दो कहीं हाथ, हो गयी पूरी 'मन की बात' और खुजली भी कम, अगर आप सचमुच के, दिल के दर्द वाले मर्द हैं, तो लिखिए #MeToo अगर आप के भी हाथ कभी सटे हैं, भीड में आप भी कभी, जाने-अंजाने एक धक्के में बहे हैं, और नर्म-मुलायम कुछ तो छुए हैं? लिखिए #MeToo अगर, आपके भी ऐसे जिगरी यार हैं, जिनके सड़कछांप प्यार हैं, जिनके हाथ की सफ़ाई के किस्से मशहूर हैं, उनकी हिम्मत की आप दाद देते हैं, और थोड़ा शर्माकर उनसे वो तस्वीरों वाली किताब उधार लेते हैं? चिंता नहीं होती आपको, क्योंकि आपकी बहन उनकी भी बहन है! लिखिए #MeToo अगर आपने हज़ारों बार, छेड़छाड़, एसिड, दबोचने, नोंचने, जबरन पकड़ने, मसलने, बलात्कार की खबरें पड़ी हैं, ...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।