सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

Tradition लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कुछ करते हैं!

  इरादे ताकत करते है, इरादों कि इबादत करते हैं, जो सामने है वही सच है, इस बात से हम बगावत करते हैं, मोहब्बत ज़ाहिर करते हैं, कलम सर को हाज़िर करते हैं, उनकी बात उन्हीं को नाज़िर करते हैं, कोई शक! काफ़िर करते हैं   पसंद, दावत करते हैं, काम, कवायत करते हैं, छुट्टी, शायद करते है, कुछ नहीं तो करामत करते हैं!  जो सोचते हैं सच करते हैं, मुश्किलें आयें तो पच करते हैं, शक सामने हो तो 'च्च' करते हैं कभी कभी टू मच करते हैं! रवायत को हम 'धत' करते हैं, मज़हबी बातों को 'But' करते हैं, आप करिये हम हट करते हैं, बात सच है सपट करते हैं!   रास्तों को घर करते हैं, मकाम साथ सफ़र करते हैं, अकेले नहीं हमसफ़र करते हैं, आईये अक्सर करते हैं किसी से नहीं कंपेर करते हैं, अपने यकीनों को जिगर करते हैं, हो जायें आप बुलंद, लगे नहीं वो नज़र करते हैं,

बूझो तो जानें!

रोक - टोक के बच्चन को, पप्पा, कैसे दिये बड़ाये, अपने मन की बात न चीनें, अब आपही कछू बुझाएं!! आपही कछू बुझाएं कि,  सब चुप्पी के मालिक, दुनिया जाये भाड़, तो का कर लेंगे गालिब, का कर लेंगे गालिब कि, बेच कलम सब खायें, खबरों की दुनिया में, सब सौदागर आये, आये सब सौदागर, सबका दाम लगायें, ख्वाब, इरादे, सपने अब पैकेट में आयें,  लाओ पैकेट में, तुम भी,  कोई बात निराली, शर्मा के का कीजे अब बिकती है लाली,  दिखती है लाली वो भी आँख में खून जमाये, मज़हव के रहनुमा रहम अब खुदा बचाये, खुदा बचाये किस किसको पैरवी सबकी तगड़ी, पैरों में पुजारी के, गरीब की पगड़ी,  कैसी पगड़ी गरीब को, शरम न आये, गिरवी रख के पगड़ी क्यों न भूख मिटाये? कौन मिटाये भुख, भूख किसकी मर जाये, ड़ाईटिंग पे है कोई कि फ़िगर ज़ीरो बन जाये,  ज़ीरो फ़िगर बन जाये ये शौक निराले, ऐ.सी. में मेहनत करके मर्द छे पैक बनाले, छह पैक के मर्द, हो गया बेड़ागरक, मरद और इंसान कि अब पहचान फ़रक!  अपनी ही पहचान से कहाँ है बच्चन वाकिफ़, यकीं के यतीम सब पप्पा मन माफ़िक पप्पा मन माफ़िक कहने को, किसका हुकुम बज...

कीचड़-ए-होली!

होली मुबारक हो बुरा न मानो , आज कीचड़ रंग है , इसलिये दुनिया रंगीं बनी है ! सच पूछिये तो कीचड़ में सनी है , सवाल है , साल भर कहाँ रहती है ? ये कीचड़ ? बेशरम आखों में                  कीचड़ = बलात्कार फ़ैले हुए हाथों में                  कीचड़ = रिश्वत अमीर इरादों में                  कीचड़ = किसानों की अपनी जमीन से बेदखली झूठे वादों में                  कीचड़ = राजनीति अंधे यकीनों में                  कीचड़ = ब्राह्मणवाद मज़हबी पसीनों में                  कीचड़ = दंगे . . . .  होली है सब भूल जाओ , माफ़ करो , दिल साफ़ करो यानी होली भी गंगा स्नान है साल भर की कीचड़ आज साफ़ है खुद ही गलती और खुद ही माफ़ है , बुरा न मानो जो आप का गरेबाँ फ़ाड़ दिया होली की यही रवायत है आपको क्...

देर-अंधेर

सुबह के फूल, शाम की धुल चमचमाती गाड़ियां नयी जैसी, बहुत सारे पानी की ऐसी की तैसी, गेंदे से सुसज्जित, पूजा युक्त गाडियाँ भक्तों के हाथों, सिग्नल तोडती हुई, "भगवान मालिक है" अपनी ही दुनिया है, उसमे 'नो एंट्री' कैसी? कहते है आज, बुरे पर अच्छे की जीत है! 'आज' पर इतना संगीन इलज़ाम तिलमिलाते 'आज' को दिलासा, यही रीत है, अब राम की लीला होगी, सीता की कौन सोचे, "एक चादर मैली सी" एक चाय की दुकान पर, टोपी लगाये, कूच हाल्फ़-पैंट टोपी लगाये, और चुस्की लेते, गाँधी(वाद) को तो पहले ही निपटा दिया अब कौन सा सच बाकी है, गुजरात गवाह है, आज सच बहुत खाकी है, टक-टक की लय पर थिरकते पाँव, चमकती रोशिनी, दुनिया रोशन, सबको एहसास है, अँधेरा है चिराग तले, वो जगह बकवास है और सुबह उठ कर देखता हूँ सड़कों पर कचरे का ढेर है (ईद के दूसरे दिन भी हैदराबाद में यही नज़ारा था, हम सब एक हैं!) सूअर हँस हँस कर कह रहे है शुक्र है मालिक! आज देर कहाँ, सिर्फ अंधेर है, दशहरा-दिवाली वगैरा आप को मुबारक हो! (नवरात्री के शो...

रक्षा बंधन - आँखों को एक और अंधन!

रक्षाबंधन की फिर बात आई,  बन जायेंगे सब भाई, कसाई आज फिर भाई! पत्नियों को मारने वाले, बहनों की रक्षा की बात करेंगे औरतों को बाज़ार में बिठाने वाले भी, अपना माथा तिलक करेंगे सीटियाँ आज भी बजेंगी, फब्तियां आज भी कसेंगी नेक इरादे भी औरतों को 'तुम कमजोर हो' याद दिलाएंगे हाथ में धागा और मुंह मीठा कर आयेंगे ये बंधन कच्चे धागों का है, या जिम्मेदारियों से भागों का है क्या बाजार में बैठी सारी बहने , बेभाई है? या अपनी बीबियाँ मारने -जलाने वाले सब बेबहन? सब कर के सहन, मन में छुपा के सब गहन फिर भी आज के दिन क्यों बनती है तू बहन? ये आशावाद पर विश्वास है या निराशा की ठंडी सांस है ?! डूबते को तिनके का सहारा है या हम में से हर कोई परंपरा का मारा है ? कल फिर से वही दुनिया होगी और वही कहानी आँचल में दूध, और आँखों में पानी, नामर्द मर्दों की बन कर जनानी! कल फिर सड़क से अकेले गुजरती लड़की बेभाई हो जायेगी !