कुर्सी है आराम नहीं है ऐसे अब सामान नहीं हैं पहले बनते थे तारीख, अब मुर्दों में जान नहीं है गरदन ऊँची है अब भी, पर अब, वो शान नहीं है नाच इशारों का हरसू, बस कठपुतली नाम नहीं है! आवाजें अब भी मौजूद है, सुनने वाले कान नहीं हैं आइना सामने है पर खुद से पहचान नहीं है! चलता है हर कोई, पर क़दमों के निशान नहीं हैं मुड कर देखें रस्तों को अब ऐसे अनजान नहीं हैं ! इबादत तो करते हैं, पर अब वो ईमान नहीं है, पलक झपकती चोरी से, सामने भगवान नहीं है? भगवानों के "बड़े" धंधे होते हैं, यकीं से कि भक्त अंधे होते हैं, कहीं Shरी , कहीं बाबा शुरु होते हैं कई नामों के यहां गुरु होते हैं! साथ है अब भी हर कोई, पर हाथों में जाम नहीं है जाना है सबको एक दिन, पर कोई मेहमान नहीं है अपने प्रभुत्व पर यकीन है , या ये खबर किसी को नहीं है स्वर्ग पधारे /सिधारे हैं प्रभू ,अब ये उनकी जमीं नहीं है !
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।