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आंनद क्या और कब?

                  मैं जो जानता हूँ, मैं कर सकता हूँ, खूबसूरती से उसे दरकिनार करूं मैं जो सोचता हूँ मेरा होगा वो उम्मीद कभी पूरी न हो मैं जो आस लगाये बैठा हूँ दूसरे सराहेगें, स्वीकारेंगे काश वो नौबत न आये मैं जो लड़ता हूँ पूरे गूरूर और मुंहबाँइं आशंकाओं के रहते वो मुझे हारना ही चाहिये जो भी पकाउँ “मैं" और ‘तुम’ चखो ‘मैं’ बिगाड़ ही दूंगा कोई आकर्षण खूबसूरती कोई देने में है जहाँ जरुरत है सहज जो भी सामने. है कोशिश जो बस मौज़ूद जो भी समझा है बाहर दूर बारीख नज़र में है वही जो है जो बनाता है तुम्हें, कोई और दिल की गर्मी के आगोश में पिघल जाये आमीन! (करीबी आनंद चाबुकस्वर की कविता का इंग्लिश से अनुवाद)

दुआ है...आमीन!

यकीन है आप अब भी आप होंगे, अपनी मुश्किलों के माई-बाप होंगे! वैसे ही दिल के साफ होंगे, अपनी चाहतों के पास होंगे! ज़िन्दगी गुज़र रही होगी रोज़ाना, और आप हर लम्हा एहसास होंगे! दुनिया बदल रही है तेज़ी से, रोज़ाना आप नए आइनों के खरीदार होंगे! ज़मीं सरकती है पैरों के नीचे, अक्सर इतेमाद!यक़ीनन अपने क़दमों पर होंगे! अपनी ज़रूरतों के तो सब दिलदार हैं, आप अपनी हमदिली के तलबगार होंगे! इस्तेमाल की चीज़ बनी हर खसुसियात, उम्मीद है आप ख़ासियत के बेकार होंगे! सारे रिश्ते और यारी फ़क्त एक 'एप' बने हैं, दुआ है आपके तरक्की से थोड़े गैप होंगे! सारी कामयाबी फक्त कमाई बनी है, ज़ाहिर है आप ऐसी आदतों के गरीब होंगे!

तुम भी न!

मुझको मेरे बारे में बतलाते हो, अब मैं क्या बतलाऊँ, तुम भी ना, कम सुनता हूँ ये बड़ी शिकायत है, फिर भी कितना कह देती हो, तुम भी न, इतने सवाल कहाँ से आ जाते हैं, यूँ तो रग-रग से वाकिफ़ हो, तुम भी न, उम्र हो गयी साथ सफ़र, जो जारी है, फिर भी तनहा हो जाती हो तुम भी न गुस्से से, कभी हार और और कभी प्यार से, अच्छा लगता है पास आती हो, तुम भी न, क्या जिस्मानी, क्या रूमानी या रूहानी, तुम फिर भी तुम ही रहती हो, तुम भी न, पूरी दुनिया अपनी है हर एक इंसाँ, फिर सामने तुम आती हो, तुम भी न! फितरत सब की पकड़ने की फितरत ये, मेरी बात मुझे कहती हो, तुम भी न मौसम बदला, बदलेंगे मिज़ाज़ भी, कम ज्यादा होंगे हम, तुम भी न

और आप!

एक आप हैं,  आप दिख रहे हैं या कुछ दिखा रहे हैं,  कहते कुछ नहीं पर कुछ फ़र्मा रहे हैं! आप मुस्कराते हैं या सुबह को जगाते हैं, चलिये आज सूरज़ को भूल जाते हैं :-) नज़र छुपा रहे हैं या बचा रहे हैं , नज़दीकियों के अंदाज़ आ रहे हैं! और एक आप ये भी किसी का सच है, आप भी सचमुच! कितना आसान है, जो किया अगर चुपचुप! जो आप की नज़र में है, वही आज़ की खबर में है, क्या समझें बारीकियों को ध्यान जिनका असर में है! अटके हुए हैं आप अपनी ही तहरीरों में,  रंग दिखते नहीं आप को तस्वीरों में! क्या ये आप नहीं ? आप अपने जख्मों को रंग लगाते रहिये  असर होने के लिये एक आह काफ़ी नहीं! अकेले हैं आप ये सोच छोड़ दीजे, यूँ नज़रों पे इतना भरोसा न कीजे! और आप सब ! रिश्ता कुछ नहीं फ़िर भी वास्ता आप से है, मुसाफ़िर होने की कुछ ये भी तरकीबें हैं! कोशिशें आपकी निशान हो जाये, इरादे आपकी पहचान हो जायें, सफ़र मुबारक है आपका, बस मुश्किलें थोड़ी आसां हो जायें!

मैं और तुम

मैं क्या महसूस कर रहा हूँ  ये महसूस करने की कोशिश सोच रहा हूँ मगर कोई ख्याल नहीं करता तो हूँ बहुत कुछ पर तेरे सवाल नहीं वक़्त वापस नहीं आता कुछ शुरू, कुछ खत्म नहीं होता उस दर्द का क्या करें जिसका जख्म नहीं होता न उम्मीद टूटी है  न एहसास छूटा है न कोई दूरी है फिर भी हर पल       लम्हों की प्यास है मैं तो मुस्कराता रहता हूँ फिर क्या है जो उदास है खाली प्याले...अधूरे निवाले...बिस्तर की सिलवट...  मैं और तुम सच कोई परिभाषा नहीं कोई अतीत नहीं न कोई कोशिश कुछ होने की करने की मैं और तुम सोच से परे गहरे समय से मुक्त मैं कहीं खत्म तुम कहाँ शुरू इंतज़ार अधूरेपन की सम्पूर्णता मैं कहाँ शुरू तुम कहाँ खत्म इस क्षण इस पल सच विचारमुक्त मैं और तुम