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एक दो तीन. . . चौदह,पन्दरह

--> बचपन के तेरह , अल्हड़पन के पांच जवानी के छह – आठ और दीवानगी के पन्द्रह कभी सोचा था  ? दीवानगी सबसे काबिल साबित होगी  ! हाथ होगी  , साथ रहेगी  , मुश्किलो  की बात रहेगी , और मुश्किलो को मात रहेगी एक उम्र पीछे छोड दी  , बचपन , अल्हड़्पन और जवानी  , नहीं कह सकते  , हार मान गये  , पर ये जरुर भान गये  , जान गये  , दाल कभी कभी गल सकती है  , जल सकती है , पर पल नहीं सकती या फिर युँ कहिये , कि सब ने अपनी जगह ढ़ुंढ ली  , बचपन आता है  , टोह लेने  , खेल जाता है , तु - तु , मैं - मैं , अड़ जाता है कभी जिद्द् पे  , जाओ कट्टी ! निराश होने कि बात नहीं  , जवानी भी तो ताक लगाये बैठी है  ,  मन ही मन कहती है  , “ मिठ्ठी - मिठ्ठी " अल्हड़्पन भी कुछ कम नहीं सताता  , अपनी धुन में आ जाये तो उसे कुछ नहीं भाता  , मुँह फ़ुला , और कुछ नहीं बताता  , चॆहरे के सामने पीठ होती है  , ये उमर ही ऐसी ढ़ीट होती है  , और चंच...