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ये क्या हो गया है?

जो मिट्टी को जान देता है, किसान ! उसपर गद्दारी का इल्ज़ाम हो गया है!! हक मांग रहा है बस अपने पसीने का, पर कान सल्तनत का ह राम हो गया है! पहुंचते नहीं हाथ दूर बहुत है, ये कैसा संविधान हो गया है? राम बोलने वाला ही भगवान हो गया है, यूं कत्ल कितना आसान हो गया है? अल्लाह का फ़ैसला अब भगवान करेगा, इंसानियत का काम तमाम हो गया है! फ़ैसला ये की तेरा मजहब क्या है , गुनहगार का नाम मुसलमान हो गया है इंसाफ देने वाले सब पंसारी बने हैं, वजन देख सारा हिसाब हो गया है! गलत है! पर भीड़ की अकीदत है ये, जो तोड़ा वही उनका मकान हो गया है!

कत्ल–ए –ख़ास!

हिन्दुस्थान ने भारत का कत्ल कर दिया, हथियार पर धर्म की धार थी, जय श्री जय श्री उसकी ललकार थी, जुबां पर खून तो पहले ही चढ़ा था, बहती गंगा में सब ने हाथ लाल किए, सवाल पूछने वालों के गले कमाल किए मिठाइयां बंट रही हैं, जश्न मन रहे हैं, भक्ति के नए मतलब निकल रहे हैं, अहंकार से अब भगवा मल रहे हैं, हरे को हरी के रंग में ढाल दिया है, हिंदुत्व ने बड़ा कमाल किया है!!

मुर्दा बड़ा मस्त है!

कुछ नहीं न होना, बहुत खल रहा है, कुछ ऐसा ये दौर चल रहा है, अपने आराम के बेशरम हो गए हैं, भूला, भुलावा अब छल रहा है। घर जंजीर है, जर जंजीर है, तमाम तामीर जंजीर है, यूं होना ही गुनाह है, और गुनाह पल रहा है। दायरे ख़त्म हैं सारे के सारे, हर हद की जद है, शोर जितना है हर घर वहीं खामोशी बेहद है! कातिल हैं अपने ही, अपनी ही कब्र बने बैठे है, बदल गए हैं उफ़क सारे, बस नाउम्मीदी के सहारे हैं! हंस रहे हैं, मुस्करा रहे हैं, खुद को गंवा रहे हैं, आईने तमाम हैं बाजार में, पैसे बड़े काम आ रहे हैं!!

देश या छ्दम भेष!

अयोध्या, रामनाम, जन्मस्थान, जरूरी बात पर गरीबी कुर्बान! बाबरी गिराना अपराधी काम, पर १०० खून माफ़, रामनाम! गुनाह कबूल भी और वसूल भी, जिसका दरबार उसका ऊसूल भी! नापाक इरादे आज़ पाक हो गए,  'नफ़रत' वाज़िब जज्बात हो गए! कहने को सबका एक संविधान, कहने को क्या, कहना आसान! बनाने वाले से गिराने वाला बड़ा, धर्म की नैतिकता चिकना घड़ा! रामनाम केवल सच हुआ बाक़ी सच का क्या हुआ? ये लो जमीं, खड़े कर लो अपने यकीं, हमारी ताकत, तुम्हारी क्या औकात ही? उम्मीद ख़राब कर दी, यकीन पर हथोड़े चलाए, चार खंबों ने तंत्र के मिलकर यूँ षड्यंत्र चलाए! इंसान मजहबी, ईमान मज़हबी, शफ़ाहत मज़हबी, मुल्क अजनबी, शहर अजनबी, रिश्ते अजनबी! जमहूरियत कहें किस सूरत, बदनियती,खौफ, शक-सुवा!