मौसम ने जैसे अपना घर बना रक्खा है, तमाम रंगों से हर कोना सजा रक्खा है! पलक झपकते बदल देती है नज़ारों को, जरूरत का सारा सामान जमा रक्खा है! जब जिसको कहे वो उस रंग में ढल जाए, यूं सब से अपने रिश्तों को बना रक्खा है! कोई मुकाबला नहीं है खूबसूरत होने का, इरादों को ही अपना चेहरा बना रक्खा है! जमीं, पौधे, पानी, पहाड़, बादल, आसमान एक दूसरे को अपना आईना बना रक्खा है! इधर बादल आसमान को जमीन ले आते हैं, जमीं ने पेड़,पहाड़ों को जरिया बना रक्खा है! जिद्द क्यों हो सबकी अपनी एक जगह है, बस इंसानों ने ये तमाशा बना रक्खा है!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।