सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

mindset लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तमाम नफरत....तमाम!

जो नेक है उसका ध्यान करते हैं, चलिए यूँ नफ़रत तमाम करते हैं!! दोनों तरफ हैं लोग जो मुस्कराते हैं, ऐसे भी क्यों जी हलकान करते हैं! इरादों की जंग है अमनपसंद रहिए! क्यों कम अपनी मुस्कान करते हैं!! जो शिकारी बन गए वो भी शिकार हैं, क्यों उनकी नफरत एहतराम करते हैं! ज़ख्म, जज़बातों की नज़र न आ जाएं, और आईने को अपना मकाम करते हैं! वो तमाम जो बदले की बात करते हैं! सब अपने घर बैठ कर आराम करते हैं!! झूठ खबरों ने आँखों को पर्दा किया है, ग़ुमराह हैं जो, सुना उसे ज्ञान करते हैं!! मिटा दो, ख़त्म करो, विनाश, ये युद्द्घोष ये भक्त खुद को क्यों भगवान करते हैं?

सचमुच! काफ़ी बड़ा है?

भारत एक बड़ा देश है....निहायत ही, महज़ आकार में फक्त प्रकार में, सबसे छोटा क्या है? हमारा दिल? या हमारी सोच? बड़ी स्पर्धा है दोनों के बीच, परंपराएं कितनी, बताती हैं एक सोच बड़ी नीच! और सोच की क्या बात है, सोच सती है, अबला है, कमाल की बला है, पैदा हो न हो, तय फैसला है! सोच द्रोपदी का चीर है, दोनों ओर मर्दानगी तस्वीर है! सोच ही समझ है, सच है, राम नाम सत्य, सीता अस्त! दिल की तो मत पूछो इसमें आने को, जाती ऊँच, रंग पूछ, लड़की करो कूच... नेकी? पर पहले पूछ? जात, धर्म? कर्म? कहाँ है मर्म? आंखें खोल, किसी भी शहर, दो-चार कदम चलिए, और मिलिए, हासिओं से (मार्जिन), कचरों के ढेर से  तरक्की की दुसरीं ओर, बसाए हुए, सुलभ शौचालय  और दुर्लभ विद्यालय पर कतार लगाए आपके बर्तन, झाडु-पोंछा से, आभारी! उम्र लंबी है, कभी आऐगी बारी, बस मेहनत करते रहो परिश्रम का फल मीठा है, प्लीज़ डोंट माइंड, ज़रा झूठा है!! आपकी शराफ़त  न ही लुटा है!!

मानवता की जय!

, आज एक सुबह देखी, धुंधली, सिकुड़ी, सिमटी, इंसान की सूरज पर विजय देखी, अहंकार की जय देखी, ताकत की शय देखी!! सीमेंट के दैत्याकार पिंजडे में कैद सुबह, मुट्ठी में बंद, चंद दरख्तों में सांस लेती, इंसान के पैरों में, अपनी AC रातों से रात गई टीवी की बातों से, और एक लड़ाई की तैयारी, अपनों से, अपनों के लिए, बाज़ार से ख़रीदे सपनों के लिये! और उस सब से पहले, चंद लम्हों के लिए सुबह का जायका लेने, 2-मिनिट प्राणायाम, हँसने का व्यायाम, देवी को प्रणाम, दिन भर छुरी चलाने, शुरुआत राम राम! किसको फर्क पड़ता है, अपना मतलब निकल गया, बाकी सुबह भाड़ में जाए चाहे धुआं खाए, चाहे धूल उसकी औकात क्या, कल तो फिर आएगी, हमारी गुलाम जो है! हमने असीमित जंगल जमीन किए हैं, इरादे आसमान, हर किसी पर जीत यही है हमारी सभ्यता की पहचान! हम अजेय हैं, हमने स्वर्ग बनाए हैं, वो भी वातानकुलित! नरक भी हमारे तमाम हैं, हम ही तो भगवान हैं!! मानवता की जय!!