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संविधान हवन!

गणतंत्र दिन का ये कैसा भजन है? संविधान भेंट चढ़ रहा ये क्या हवन है? बोलने की आज़ादी सबको मिली है! फिर क्यों बात आज लाठी का मन है? सरहदों के मायने और संविधान के आईने? क्या अहम है और क्या भरम है, अहं है? क्यों सारी बातें किसी का धरम है? क्या हुआ कि आज नफ़रत चरम है?

सुबह की दावत!

आहिस्ता आहिस्ता सुबह जागती है, क्या जल्दी, क्यों जिंदगी भगाती है? सुबह खिली है खिलखिला रही है, खुश रहने को आपको दावत है! सूरज खिलता है या की दिन पिघलता है, जलता है इरादा या की हाथ मलता है! सुबह के सच रोज़ बदलते हैं, आप किस रस्ते चलते हैं एक अंगड़ाई और एक सुबह, फांसला किसको कहते हैं? रोशनी उगती है अंधेरों में तो सुबह होती है, जाहिर है हर बात कि खास कोई वज़ह होती है! सुबह से सब के अपने अपने रिश्ते हैं, कुछ तनहा है, कुछ जलते कुछ खिलते हैं! एक सुबह आसमां में है, एक ज़मी पर, गौर कर लीजे आपका गौर किधर है! एक और सुबह सच हो गयी, अब और क्या चाहिए आप को?  अगर ये सुबह आप को मिल जाए, फिर क्यों कोई और अरमान हो? सुबह को शाम कीजे, दिन अपना तमाम कीजे, गुजर रही है ज़िन्दगी मूँह ढक आराम कीजे! हर रोज़ सुबह होती है, हर रोज हम निराश हैं, हर रोज चाँद ज़ाहिर है, फिर क्यों हम उदास हैं! 

ओ.....बामा ओ....बामा!

देश की लग गयी वाट, खा गए समझ के चाट, बजाओ अब ये गाना, ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना हमरा चूल्हा नहीं जलता ज़रा अपना कचरा दे जाना, ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना झुठी हमारी सब शान, फिर भी करना है गुणगान, गुमनाम हो जाए गरीबी ऐसा आधुनिक विज्ञान, झांकी लंबी है देख जरा जाना ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना सब धर्मो का मान,आखिर सब राम की संतान, मार-प्यार से बुलाते जॉन,ज़ानी घर-वापस आना जो नहीं माने उसका मुज़फ्फरनगर ठिकाना ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना बदल किताबों को देते नए सच का ज्ञान बड़ा प्राचीन है हमारा आधुनिक विज्ञान, भूल गए बस थोडा हमको याद दिलाना ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना बड़ा जटिल हमारा गणतंत्र, गण गरीब अमीर तंत्र, मजदूरी के लिए जरुरी गरीब, गरीब रह जाना "थोड़ा खाओ थोड़ा फेंको" गाओ ये गाना   ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना पूरा दिल्ली कर दिए सेफ, चोर बदल के आये भेष, हमारे जवानो और आपके कुतों को मिलेगा खाना बाकि भूखों को है भाड़ में जाना ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना