कुछ सवाल थे जिनके जवाब मिले थे एक शख्स कि शक्ल में ख्वाब मिले थे! वक़्त चलने-ठहरने के राज़ मिले थे , कल की क्या सोचें जो आज मिले थे! बेशक्ल सपने थे फ़िरते आवारा से, ऐसे कुछ हालात ज़ब आप मिले थे! सपनों को पालने के शौकीन नहीं थे, क्या करें वो जो ऐसे लाज़वाब मिले थे! सोये हुए कितने ख्वाब सुबह गुम हुए जागे हुए थे जब हमको आप मिले थे! यूं नहीं कि तराजू लिये फ़िरते हैं हम, कुछ यकीन जो बराबर नाप मिले थे! न मन्नत माँगी, न चराग लिये घूमे, इत्तफ़ाकन ही कभी हम-आप मिले थे! मुसाफ़िर हैं सभी किसी न किसी सफ़र के, फ़िर कंधे मिले गये ओ कभी हाथ मिले थे! न इक़रार हुआ कभी और न इनंकार हम उनसे मिल गये वो हमसे मिले थे! न हाल ठीक था, न हालात मुफ़ीद* थे, जिद्दियों के आगे किसकी दाल गले थे? मुफ़ीद - Favourable
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।