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मुकम्मल ख्वाब!

कुछ सवाल थे जिनके जवाब मिले थे एक शख्स कि शक्ल में ख्वाब मिले थे! वक़्त चलने-ठहरने के राज़ मिले थे , कल की क्या सोचें जो आज मिले थे!  बेशक्ल सपने थे फ़िरते आवारा से, ऐसे कुछ हालात ज़ब आप मिले थे! सपनों को पालने के शौकीन नहीं थे,  क्या करें वो जो ऐसे लाज़वाब मिले थे! सोये हुए कितने ख्वाब सुबह गुम हुए जागे हुए थे जब हमको आप मिले थे! यूं‌ नहीं कि तराजू लिये फ़िरते हैं हम, कुछ यकीन जो बराबर नाप मिले थे! न मन्नत माँगी, न चराग लिये घूमे, इत्तफ़ाकन ही कभी हम-आप मिले थे! मुसाफ़िर हैं सभी किसी न किसी सफ़र के, फ़िर कंधे मिले गये ओ कभी हाथ मिले थे! न इक़रार हुआ कभी और न इनंकार हम उनसे मिल गये वो हमसे मिले थे! न हाल ठीक था, न हालात मुफ़ीद* थे, जिद्दियों के आगे किसकी दाल गले थे? मुफ़ीद - Favourable

एक और अज्ञात!

अज्ञात है और मेरा मित्र भी, एक कोशिश है एक चित्र भी सामान्य है और विचित्र भी सीमित है पर सीमा नहीं जीवित हैं पर जीना नहीं सब कुछ ठीक है, और सब कुछ बदलना है रास्ता बना नहीं फिर भी चलना है, सपने हकीकत हैं, जो बोले शब्द वो जीवित हैं, अपनी ‘गति’ के समाचार, और खबर बुरी नहीं है, सच्चाई छुरी नहीं है, क्योंकि होता वही है जो तय है, और चाल आपकी, आपकी शय है, मात नज़र की कमजोरी है, उम्मीद कि न दिखे फिर भी डोरी है वैसे भी आँख के सामने गर अँधेरा है, तो हाथों को हवा कीजे, यकीन की दवा कीजे , और मारिये एक छलांग, जमीन से गिरे भी तो कहीं नहीं अटकते, एक दो तीन,...... धड़ाम देखा, न चींटी मरी, न आप , पर तबीयत हरी हो गयी! चलिए अब नए सिरे से सोचें बोलने वाले तो कुछ भी बोलेंगे!

आसान काम!

जो मालुम है उस पर यकीन रहने दो! अपने सपनों को तुम हसीन रहने दो!! मुश्किलों को अपनी आसान रहने दो! जब तक मैं हुँ , मेरी जान रहने दो!! कब समझे है आईने अंजान रहने दो! अपनी आँखों में ही अपनी शान रहने दो!! मुझको मुझसे ही समझो , बात आसान रहने दो! मेरी गलतियों को तुम मेहमान रहने दो!! छू कर महसूस करो लगे जो दाम रहने दो! जिंदगी को अपनी छलकता जाम रहने दो !! चोट और भी हों , रस्ते का काम रहने दो ! मुझे अपने छालों का बाम रहने दो !!