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रास्ते!!

  यूं गुजर रहे है की जैसे रास्ता हैं, कुछ होना नहीं, कुछ बनना नहीं, साथ सब के हैं, किसी के हाथ नहीं, अगर मुश्किल हो  तो वो रास्ता नहीं, रास्ते किसी के रास्ते नहीं आते, और कभी भटकाते नहीं हैं! रास्ते कहीं जाते नहीं हैं, कहीं पहुंचाते नहीं हैं, रास्ते बस शून्य हैं, अपने आप में कुछ नहीं, पर कोई साथ ले, तो सौ-हजार हैं, जरूरी हमसफ़र है, आपसी व्यवहार हैं! अपने कदमों से पूछिए! क्या वो इस दोस्ती तैयार हैं? मंजिलों से घिरे हुए हैं, फिर भी रास्ते आज़ाद हैं, जो ये समझ जाए वो मुसाफ़िर है, सफ़र ही उसका आख़िर है, समझ पाएं तो, जिंदगी भी एक रास्ता है, आने और जाने के बीच से गुजरते, रुकने का सोच रहे हैं? मूरख, आप जागते भी सो रहे हैं!!

रास्ते, मुसाफ़िर और कंकड़!

आज हमने एक शहर देखा , उगला हुआ जहर देखा , मुसाफिर बन गुजर गए , हमने कहाँ वो असर देखा कितने रास्ते आज कुछ वीरान हैं ,  मुसाफ़िर तुम आज मेहमान हो , कितने सफ़र उसने कर दिये काबिल , आज समंदर हो गये तुम ओ ' साहिल रस्ते भी हैं और निशान भी ,  यकीं भी है या गुमान ही , नज़र आयेगें खुद को किसी मोड़  पर , बना रखिये पहचान भी . कुछ एक सफ़र , कोई नेक डगर , मासूम असर , मुस्तैद नज़र  कुछ साथ चले , कोई हाथ मिले , कुछ दिल को लगे , ऐसी है खबर ! चलो कुछ ऐसे सफ़र करते हैं , चंद लम्हों कों जिगर करते हैं , उठते रहें कदम यूँही , हम कहाँ  'क्या अंजाम' ये फिकर करते हैं ! कदमों में उम्मीद बंधी है , कोशिशों से रास्ते जुड़े हैं , ज़रा शुरु करिये सफ़र को , यकीन मोड़ पर खड़े हैं ! सफ़र तब्दिली के मुकम्मल नहीं होते ये शौक फ़िर भी जायज़ हैं , दुनिया लगी है सब को उगाने में शुक्र ! सब फ़सल नहीं होते !

और सफ़र अपने!

बदलते रस्तों के सामान, साथ को थोड़ी सी शमशान,  चलना काम है अपना, किसको परवा है क्या अंजाम! "एक सफ़र कई रास्ते, मुसाफ़िर होने के वास्ते, कितने मकाम ठाढें थे, सो कौन हुए हम आस्ते!" "सफ़र सबका है, और सब ही शुक्रगुज़ार भी, कहने को रुके हैं, मुसाफ़िर हम, तैयार भी!" "दिल को मिले दिलवाले, लम्हों का हलवा बना ले, जायके जिंदगी के सफ़र में, दावत कबूल हो!" "तस्वीर है या कोई तासीर है, मिजाज़ है या मर्ज़ी, तमाम तज़ुर्बे है इस सफ़र के और कलम दर्ज़ी!"   "तमाम सफ़र है रास्तों में गर आपको फ़ुर्सत है, रोज़ाना से दूर चलिये बड़ी हसीन फ़ुर्कत है!" न दूर जाने की बात है न नज़दीकियों से वास्ता,  प्यासी है रूह अपनी इसको नहीं कोई नाश्ता! "युँ तो आसमान भी काफ़ी नहीं, जो जमीं है वो भी कुछ कम नहीं!" सफ़र है पर सब चलते नज़र नहीं आते, कि अपनी ही तस्वीर में कैद हुये जाते हैं आप हैं हम हैं और वो कई इतफ़ाक,  चलने को पूरे हैं और रुकने को अधुरे! सफ़र अपने समय के मोहताज़ नहीं, जिंदगी तज़ुर्बा है सर का ताज़ नहीं! ...

बातों बातों में.....

कहीं कुछ रोकता है क्यों.... खुला दिलो-दिमाग हो तो दरवाज़े दीवार नहीं होते, आपस की बात है, वरना ये आसार नहीं होते  देखने और होने के बीच के फ़ांसले .... नज़र आँखों में नहीं यकीन में होती है,  एक हंसी से भी जिंदगी हसीन होती है! सब एक नाव में सवार हैं . . . आपको हमारे माथे की पेशानियां नहीं दिखती, जमीं रहने दो, वरना लब्जों में जान नहीं दिखती सफ़र आपके भी हैं और अपने भी.... गुजरते हुए लम्हे हैं गुमराह मत हो,  मुश्किलें मील का पत्थर हों, सफ़र न हों! तक्दीर फ़क्त एक रास्ता है,  मंज़िल नहीं होती, मुश्किल, मुसाफ़िर न हो, तो वो मुश्किल नहीं होती! मुसाफ़िर होना फ़कीरी काम है, सफ़र में यही बस एक नाम है!.... हमारा दुनिया में होना ही एक सफ़र होता है,  कौन सी राह से गुज़रेंगे, ये अपनी नज़र होता है! मुसाफ़िर रहना हो तो फ़कीरी अंदाज़ हों, कटोरा हम देंगे मुबारक आपकी आवाज़ हो! हाथ फ़ैला दिये तो कटोरा तैयार है,  दिखती सामने होगी, पर जहन में है, वो जो दीवार है, सच करवट बदलते हैं.... दुविधा भी सुविधा का दुसरा नाम है, वो बहकना क्या जो हाथों मे जाम है? मोड़...

मोड़ के जोड़ तोड़!

उम्मीद को आसमान नहीं लगता, मुसाफिर को सामान नहीं हालत को क्या इल्ज़ाम दें, गर जज़्बे को जान नहीं   अभी लौटे हैं और चलने की सोचते हैं मेरे सफर ही मेरा रास्ता रोकते हैं अब रुके हैं तो हम मुसाफिर कुछ कम नहीं होते    साहिल को छु कर आते धारे नम नहीं होते  हर चलना सफर हो तो क्या?  रास्ता न रुके तो कहाँ ? मुसाफिर कोई रास्ता नहीं बना, चलते चलते तुम्हारे कदमों ने इसे बुना,  मंजिलों को क्या तलाशते हो,  वहीँ पहुंचोगे जो तुम्हारे क़दमों ने चुना गुजरना कोई अंत नहीं, सफर कोई अनंत नहीं,  काफिले हर मोड़ मिलेंगे, अपने आँसू काबुल हों  सब उड़ते हुए पंछी आज़ाद नहीं होते आसमान को इरादे लगते हैं युहीं कोई सफर मुकम्मल नहीं होता सफर में मुश्किलों के अँधेरे लगते हैं