आईने झूठे हैं या हम मुस्कराते हैं , दिल को कैसे कैसे फ़रेब आते हैं , युँ ही याद कर लेते हैं आपको , यूँ ही आपके करीब आते हैं , मुश्किल नहीं होती आपके जाने की , हम नहीं रोज़ नसीब आज़माते हैं , खामोश आहटें साथ चलती हैं , नहीं दुरियों का शोक मनाते हैं आपकी मोहब्बत के गरीब नहीं , फ़कीरी के वो अंदाज़ आते हैं ! न हों तो हर लम्हा बदल जाता है कहां हमको ज़ुदा हिसाब आते हैं ऐसे कोई अकेले कम नहीं पड़ते , पास आये तो दुरियाँ गिनाते हैं बिस्तर को अकेले कम नहीं पड़ते दो हों तो क्यों फ़ासंले गिनाते हैं ? दिल को कैसे कैसे फ़रेब आते है , सपनों में भी हमको आज़माते है
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।