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नील सलाम!

अफ़सोस तो बहुत है पर क्या होगा, मेरे होने को कोई तो वज़ा होगा? चराग़ नहीं बुझा रौशनी चली गयी, एक दरख़्त के नीचे जमीं चली गयी! वो क्या वज़न है जो पैरों को ज़मी करता है, कुछ खो गया आज बड़ी कमी करता है! आज उम्मीद बहुत उदास हो गयी, अज़नबी सी अपनी ही साँस हो गयी! किसी कोने में ज़िन्दगी के कितना वीराना है, खुद को भी तमाम कोशिश कर मिल न पाये! ....दिल रो दिया...कुछ मैंने भी खो दिया....! काला सच है हम सब ने रोहित को मारा, चला गया वो हम सब को कर के बेचारा!   एक दबी हुई चीख हम क्या समझेंगे, किसी ने हम को सांस लेने से कहाँ रोका! उम्मीदें आसमान होती हैं इंसान की, पर मर्ज़ी चल रही जात के पहलवान की!!

रोहित वेमुला - एक सोच

  मैं भी पूरा इंसान हूँ, आप भी? अगर होंगे तो समझ पाएंगे! बस गिनीतियों में सीमित है पहचान, ये क्या दौर है, ये क्या इंसान?? उम्मीदें खोयी है इरादे अब भी यहाँ हैं, सितारों के आगे और भी कोई ज़हाँ हैं!   ये कैसी अवस्था है, बड़ी बीमार व्यवस्था है! चुपचाप सर झुका रहिये तो आप इंसान हैं, सवाल उठाने वाले दो दिन के मेहमान हैं! ये कैसी मोहब्बत कि पंख नहीं देती, सितारों के आगे जहाँ और भी हैं  क्या आपकी कोई जाति है, या आपको मानवता आती है!? कितनी बीमार सोच है, की कोई पैदाइशी कम है!   एक ख़त, और कड़वे सच, बेबाक कितना, कितना बेबस! कड़वी लगी है तो सच जरूर होगी, उम्मीद है ज़हन में दर्ज़ ज़रूर होगी! (रोहित का खत एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, ये पड़ कर महसूस किया था, पर अब ये सच बन कर दुनिया के अलग अलग कोनों से विरोध प्रदर्शन की तस्वीर बन कर आ रहा है। उस खत और उस में जिन सच्चाइयों कि तरफ़ इशारा किया है उन्हीं से निकल कर ये अभिव्यक्ति बाहर आइ है।)