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सोच की गड़बड़ या फ़क्त बड़बड़!

होर्न का तेवर मिनस्टर का फ़ेवर , ड़ॉवरी का वर , जिंदगी आपकी क्यों दूसरे ड्राईवर ' मर्द ' नाम है जात है नर , सत्यानाश दुनिया , जा मर ! कम उम्र में निकलते बच्चों के पर , जल्दी सीख गये गुटर - गूँ कबूतर , हाथ में मोबाईल पर कंधे पे सर ? क्या अपनी चाल पे है शीला आंटी का असर ? कहते हैं अपनी मर्ज़ी है , पर खबर नहीं कौन दर्ज़ी है , ज़ेब खर्च है और महंगाई अर्ज़ी है , किसको दोष दें सच्चाई फ़र्ज़ी है , घुटने में सर ड़ाल के पड़ो , ज़िंदगी जंग है , अपनों से लड़ो ? अभी बच्चे हो जरा बड़ो , रिश्ते खून होते हैं , दोस्त जुनून , सोचो मुसीबत में कौन सुकून , हमारे हाथ में नहीं कुछ , जो मरज़ी हुकूम ! दोस्ती छुप - छुप के करेंगे , जो हाथ आया उस पे मरेंगे , दोस्ती सौगात होती है , पर रिश्ता बने तो उसकी जात होती है , इज़्ज़त सिर्फ़ ताकत की लात होती है , वरिष्ठ , बुज़ूर्ग , बड़े सब चिकने घड़े , मान्यताओं मे अटके , परंपराओं में गड़े , छोटों की सच्चाई बेमानी है , हमने भी प्यार किया था . . . तेरी - मेरी माँ की . . ....