हम उन्हीं आवाज़ों से बात करते हैं , जिन्हें हम खुद सुन सकते हैं , और काया बोलती है , और वो बात करती है , सिर्फ़ , उस देह - ए - दुनिया से , जो उसकी पकड़ में है। और वो अपने आप में एक जहां हो जाती है , गौर करके , कि उसका सरोकार क्या है और ये सीखती है , कि उसे क्या होना है , और क्या लाज़मी है! (डेविड व्हाईट की द विंटर ऑफ़ लिसनिंग से) From The Winter of Listening by David Whyte in The House of Belonging
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।