चलिए सबसे प्यार करें नफ़रत से इंकार करें पूंजीवाद के बाजारों ने नाप तौल सब इंसानों को कम ज्यादा में बांटा है बड़ी चमक इन बाजारों ने "है", "नहीं है" में छांटा है! जहन में कब्ज़ा करती इस बदनियती को बर्बाद करें चलो! फिर प्यार करें! करने को हैं लाखों काम, हज़ार बातें, सच तलाशना, सवाल पूछना, आवाज़ उठाना, उनके लिए, जिनको खामोश किया है, समाज ने, संस्कृति ने, विकास ने, सरहदों ने, जो जमीन पर है ज़हन में भी! आईना हैं हम, दुनिया का, और सब अच्छे-बुरे का, जो नज़र आता है दूसरों में, गुण, दोष, और हर एक शख्स हमारा आईना है, हमारे किए का, और हमारी आवाज़ खामोशी है, किसी की! कहिए क्या कहना है, और गौर से ख़ुद को सुन लेना! और खेल है सब, जो खेल रहे हैं, अंजाने होकर, कम ज्यादा होते, ख़ुद में ही, खुद को, ढूंढते, खोते, जो कम करता है, उसी को ढूंढते हैं, जो ज्यादा है, उसे ही बचाते हैं? अपने ही डर से, कैसे ये नाते हैं? फ़िर भी, यही दुनिया है, यहीं रोज़ हमारे हाथ गुजरती, पूछती हमसे क्या तुम्हारे उसूल ...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।