“Nothing” is perfect अर्थात 'कुछ नहीं' ही पुर्ण है क्योंकि "कुछ नहीं" में कुछ भी नहीं होता कुछ हो तो वो "कुछ नहीं" नहीं होता और, मनुष्य के पास सब कुछ होकर भी कुछ न कुछ नहीं होता शुन्य अपने आप में पुर्ण है उसे बड़ने घटने की आस नहीं इसी कारण शुन्य का गुणा नहीं भाग नहीं पर मनुष्य को है आगे निकलने की होड़ करता है शून्य के साथ भी जोड़ तोड़ पर हमारी दृष्टि शुन्यता देखो हम शुन्य होने का तैयार नहीं उसकी सहभागिता हमें स्वीकार नहीं मनुष्य को अपनी गलतियों का अंहकार है पुर्णता ढूंढता है पर शून्यता से इंकार है छोटे मुंह, बड़ी बात है पर न चाहें तो भी अपने कर्मों पर अपना अधिकार है और प्रदुषण मस्तिष्क का हो या वातावरण का आजकल जो भी हमारा हाल है शुक्र है जाने-अंजाने लगता है हमारा शून्य होने का विचार है
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।