मर्ज़ी के अपनी बेईमान हो गए, आज से हम गुलाम हो गए! जमीन अभी भी अपनी ही है, ये क्या हुआ के मेहमान हो गए! सब कहते हैं कि जमहूरियत है, क्यों अपनी कह बदनाम हो गए? अपना कहा था सो आम हो गए अब सारे उनके वादे हराम हो गए! वक्त के साथ नीयत बिगड़ती रही, उनकी जरूरत को क़त्लेआम हो गए! अगवा कर लिया सब अवाम को गुनाह सारे सियासी काम हो गए! दो में बाँट दिया सरकारी फ़रमान ने, एक श्रीराम हुए, दूसरे 'हे राम' हो गए!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।