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मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

वही पुराना नया साल!

क्यों पूछते हैं के; ये साल कैसा है? जो हम कहें; ये सवाल कैसा है? इलाज़ नहीं मर्ज़ का और हाल कैसा है? दफना दिया ज़हन में वो सवाल कैसा है? खुशी किस बात की, बवाल कैसा है? आसमान भेदती तरक्की का अंजाम कैसा है? ख़बर बन कर आता इश्तहार कैसा है? उम्मीद कैसी है यकीन कैसा है? ख़ुदा को दफन करके राम कैसा है? मज़ाक बन गए हैं इलेक्शन सारे, सच, क्या मन की बात जैसा है? बेशर्म है नहीं मरता, इंसान कैसा है! गला दबोच के रखा है साल भर से, कोई सुनेगा वो पेलेस्टाइन कैसा है? क्या बदला है जो ये साल बदला है? जरा सोचिए ये सवाल कैसा है?