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अपने अधूरे कि दूसरे के पूरे?

तमाम शादियाँ है इस ज़हान में, हर रंग की, क्यों जरूरी कि हम इस खेल के जमूरे हों? ठीक करना है मेरे मुस्तकबिल को या मुझे तक़दीर के ठिकाने लगाना है? अपने अधूरे अच्छे, क्यों दुसरे के पूरे हों, बेढब रस्मो-रिवाज़ों के हम क्यों जरूरे हों? मेरे रास्ते हैं, मेरे सफ़र हैं, कभी अकेले कभी हमसफ़र हैं, कदम मिलेंगे तो साथ भी चलेंगे! यूँ नहीं हम किसी साँचे ढलेंगे अपने तजुर्बों के मुकम्मल हैं, क्यों कोई मेहरबानी पेलेंगे ये क्या मज़बूरी है कि किसी के हाथ आयें अच्छे खासे हैं, लाज़िमी है कि हम खुद को मिलेंगे! रब की मर्ज़ी या खुदगर्ज़ी, फ़िक्र की बातें, झूठी अर्ज़ी डर के फैसलें सब सब फ़र्जी अपनी राय के सब बाबर्ची फटे नहीं मेरे पैराहन मेरे चादर मेरी मनमर्ज़ी, नाप मेरे ही रहेंगे, आप क्यों बने हैं दर्ज़ी! चलने से इनकार नहीं रास्तों को नकार नहीं सामान किसी का बन चलने को तैयार नहीं सफार के लिए हमसफ़र जरुरत है, और खुदमख्तारी गुनाह नहीं इंसानी फ़ितरत है (क्यों हम हर लड़की को शादी के तराजू में तोलते हैं, सब करते हैं कोई वजह है या दायरे में बंधी सोच। आ...