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"जंग?"

जंग में आसरा क्या है? भरोसा कहां है? अपनी ही हिम्मत के सहारे हैं,  उसी हिम्मत के बेचारे हैं! लाखों है दुनिया में ऐसे,  जो जंग के मारे हैं! जंग क्यों वही सारी जंग है, सोच जिनकी तंग है,  इंसान होना रंग है? भेद के सब भाव हैं,  झूठे सारे ताव हैं,  सदिओं के ये घाव हैं! संस्कॄति के दाव हैं,  नैतिकता - चारों खाने चित्त! ज़िंदगी जंग आवाजें इकट्ठी होती हैं,  जय भीम! हक की,  कुचले हुए सच,  जुल्म की लाखों परतें,  चीरते,  जमीं होते हैं! सीखते, आवाज़ उठा,  कंधे से कंधा मिलाते! जंग के हथियार खबरें बतानें को नहीं,  बनाने के लिए हैं,  जताने के लिए हैं,  बरगला कर झूठ से भीड़ जुटाने के लिए हैं, सच से ध्यान  बंटाने के लिए हैं! जंग के प्रपंच! एकता कमाल है,  अनेकता बदहाल है सब को एक साँचे में ढलना है,  भेड़ बन के चलना है  "मैं" "मैं" "मैं"  सब को लगता है "मेरी" आवाज़ है  हंसी-खुशी मन की बात मान रहे हैं  जो छ्न के आया  उसी को छान रहे हैं! आप नया क्या जान रहे हैं?

ये दास्तां! ब्लॉइंग इन द विंड!

कितने रास्तों पर हम चलें जब कहेंगे ,  हां ! हम हैं इंसान कितनी सरहदों का सामना हम करें जब कहेंगे ,  बस ! अब और नहीं कितनी जंग लड़ें और मरें , जब कहेंगे ,  नहीं ! एक भी और नहीं ! ये दास्तां हवा में है बयां , हवा में है ये दास्तां बयां , कौन से सच सर चढ़े हैं सदीओं से आखिर कब जमीं से मिलेंगे ? कब तक जुल्म में लाखों घुटते रहेंगे  कब कहेंगे हम हैं आज़ाद ? किस किस से ओ कब तक हम मुंह फेरते रहेंगे ,  जैसे कुछ हुआ ही नहीं ? ये दास्तां हवा में है बयां ,  हवा में है ये दास्तां बयां , कितनी बार कोई नज़र उठाते रहें के आ जाए नज़र आसमाँ कितने आंसूं बरसे जब कभी कानों पर ,  जूं रेंग जाए कितनी मौतें और खबरों के बाद ,  " बस ! बहुत हुआ " कह पाएं ? ये दास्तां हवा में है बयां ,  हवा में है ये दास्तां बयां! कौन से आईनों में हम देखें के तस्वीर पुरी जान पाएं? कितने बचपन बच्चों के मजदूरी से ...