बड़े कायदे से एक कायदा तोड़ दिया, दुनिया को सरेआम गुमराह छोड़ दिया! कहें वो जो कहते हैं, यही होता आया है, समाज़ सदियों से यूँ ही सोता आया है! मर्ज़ी थी सो हमने कर दिया मन-माफ़िक पहले भी ये इल्ज़ाम अपने सर आया है! दुनिया हमारे कदमों में कभी भी नहीं थी, कुछ अपनों से आज़ ये पैगाम आया है! बड़ी बेमुरव्वत निकली मोहब्बत अपनों की, कहाँ दुआओं में आज अपना नाम आया है? मुश्किलों में कब हमने अपना साथ छोड़ा ये अपनापन ही अपने बड़े काम आया है, कोई भी अकेला नहीं है इस सफ़र में, फ़िर क्यों रास्तों पर इल्ज़ाम आया है? अरसे से एक दुआ थी जो कबूल हो गयी, क्यों किसी ज़ुबान पर काफ़िर नाम आया है! इल्ज़ाम लगते हैं बहक गये हैं हम बेखुदी में युँ तो आज ही हाथों मे अपने जाम आया है! (इमरोज़ ने सितम्बर २००० में हैदराबाद ऑल्ड़ सिटी में एक अंतराष्ट्ईय संस्था प्ले फ़ॉर पीस में एक वॉल्टीयर का काम शुरु किया था, 16 साल की उमर में, आज वो अमेरिका में प्ले फ़ॉर पीस की ऑपरेशन मैनेजर हैं और कोस्टारिका की UN पीस युनिवर्सिटी से Masters कर रही हैं!)
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।