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एक कतरा समंदर!

जो भी है मेरे अंदर है, एक कतरा, एक समंदर है! कतरा एक-एक, एक मंज़र है नज़र में आपकी मंतर है! वो मंतर जो छूमंतर है! मेरे रस्तों का तंतर है! रस्तों रस्तों का अंतर है, अंत मिटा सब अंतर है! अंत भी एक निरंतर है, जीवन जो जंतर मंतर है! जीने मरने में फर्क क्या? सब चार दिन के अंदर है! एक लम्हे सारी उम्र बसी, दिन चार, चार समंदर हैं! एक समंदर तुम, एक मैं, और सफ़र सात समंदर ये! हमसफ़र रास्ता भी हैं, सफ़र ऐसे मुक़म्मल हैं! बिन ख़ामी कौन मुक़म्मल? हर कतरा एक समंदर है!

छंद समंदर

साहिल किनारे, समंदर के धारे, सुबह के नज़ारे, रोशन ज़हाँ रे! उम्मीदों के इरादों को कैसे इशारे, यकीनों को सारे नज़ारे सहारे! लहरों के रेतों पर बहते विचारे, लकीरी फकीरों के छूटे सहारे! हर लहर को मिले अलग किनारे, दूजे को देख क्यों हम आप बेचारे ? दूर यूँ उफ़क से समन्दर मिलारे, सपनों को अपने कुछ ऐसे पुकारें! किनारों को समेटे समंदर ज़हाँ रे, किनारों को लगे वो उनके सहारे 

जिंदगी समंदर

सुबह समंदर की, कुछ बाहर से कुछ अंदर की, शांत किसी बवंडर की, सब कुछ है, और कितना कुछ नहीं, ये सच भी है, और है भी सही, कोई है और है भी नहीं, सामने है वो साथ है क्या, माक़ूल ज़ज्बात हैं क्या, खोये की सोचें, या पाए को सींचें, लम्हा हसीं है, पर कैसे एक उम्र खींचें, हाँ है अभी, उतना अपना, जितना आप छोड़ दें, हाथ बड़ाएं तो क्या तय है, वो पल मुँह मोड़ दे, जो है बस वही, आगे कुछ नहीं, ज़िन्दगी समंदर है, लम्हे सारे बंदर, पकड़ने गए तो हम क्या रहे!?

पल पल समंदर

कहाँ से उठी ओ कहाँ जाएगी, ये सुबह, फैलती सिमटती ये जगह, मिलती बिछड़ती कोई वजह भाग रही है, या जाग रही है, नज़र, समा रही है या समेटे हुए, रेत, मिटती है या लिपटती है, लहर, अकेले है या साथ के जश्न की, पहचान, तमाम है, और हर पल तमाम भी, सच यकीं भी है ये और गुमाँ भी, ज़िन्दगी, है? इस पल, और कल?

समय समंदर!

साथ समंदर साथ साथ एकांत साथ दुनिया सारी, जमीं समंदर आसमाँ सूरज साथ सब पर नहीं कोई किसी पर सवार, एक दूसरे को सब, साथ, फिर भी अकेले पहचान से मुक्त, साथ, कभी लहर समंदर, कभी समंदर लहर, कभी चट्टान, मजबूत सीना तान, अगले पल भाव-विहोर समंदर में लीन विहीन, उजागर भीगे, डूबे, निहित, खामोश, खिलखिलाते, सच, हाथ आते, फिसलते, अपनी शर्तों पर मिलते, ओ पिघलते सब यहीं हैं, आकाश और अवकाश आपके हाथ आने को तैयार, गर आप रुकें, बस उतनी देर, की समय समंदर हो, क्या आप को फुर्सत है?

बूंद बूंद तिनके, आसमां चुन के!!!

कोशिश नापिये, वही मंज़िल जाती हैं, हर कोशिश अंजाम है, क्यों 'मुश्किल'पहचान है! रेत के भी महल होते हैं, इरादे घड़ियों से न नापो! हर तिनका आसमान है, गर उसे अपनी पहचान है! हर पत्ता हवा है, उसको रुख पता है! हर बून्द समन्दर काबिल है, हर तहज़ीब बड़ी ज़ाहिल है! नज़र हो तो बून्द समंदर है, समझो क्या आपके अंदर है! बिना जमीं के आसमान कुछ नहीं, मुश्किल न हो तो आसां कुछ नहीं!