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पहचान - एक गुलामी

बचपन से सिखाते हैं, मुझे "मैं" बनाते हैं, अलग करके सब से रिश्ते दिखाते हैं, जज़्बात जगाते हैं, प्यार, देखभाल, मदद हरहाल, इज़्ज़त, और फिर इन सब को सही-गलत, अपने-पराये छोटे-बड़े के दायरे में बंद कर नैतिकता बनाते हैं, चेतना बना कर सरहदों के कैदी बनाते हैं, इस तरह आज़ाद हो हम दुनिया में आते हैं!

पहचान - एक ज़ुबान

ज़िंदगी नाम है, या काम? संज्ञा, सर्वनाम? क्रिया, विशेषण? या ये सब तमाम? क्रिया बिन क्या नाम? नाम बिन कोई काम? काम कोई विशेष हो जो बन जाए सर्वनाम? या सर्वनाम काम है? जैसे उपनाम है, जन्म दर जन्म, आपको जकड़े हुए, जात, धर्म विशेषण, क्रिया एक शोषण? कुरीति, कुपोषण? और उन सबका क्या, जो बेनाम हैं, उनके लाखों काम हैं, न उनकी कोई संज्ञा, न कोई सर्वनाम है! भाषा से ही, भाषा में भी उनका काम तमाम है!

पहचान से - अधूरे

कोई भी एक पहचान, हमें अधूरा करती है, हवा, पानी, राख, मिट्टी, लाखों ख़्वाब, रंग जाने पहचाने, रिश्ते, माने न माने वो सब जो कभी हाथ थामे, कभी एहसास बन, कभी प्यास बन, हमारे रास्तों के हमसफ़र हैं, बिन उनके, हम कम हैं, हम एक हैं नहीं, पूरे अधूरे हैं, अधूरे पूरे हैं!

बहुरूपी सच!

अंधे आसमाँ 5

खेल - अब देखिए! मेरा अपने से बेजोड़ मेल , अपनी हिम्मत से दो - दो हाथ , डर के साथ , डर से बात कौन बड़ा? करने के डर और न करने का , आमने सामने खड़े हैं! ज़िंदगी के सारे सच टूट कर , पैरों तले पड़े हैं!! हारा कौन? जीता किससे? होंगे मशहूर मेरे किस्से!! क्या मुश्किल है? अपनेआप से हारना? या अपनेआप को मारना? फर्क है कुछ? कहीं? किसको? मैं जी रहा हूँ! किसके लिए? कोई कदम मेरे साथ? कोई पीठ पे हाथ? किसी की नज़र मुझ पर? या मैं बेनज़र हूँ? बेअसर? तमाम , हाथ , पैर , नाक , कान , मुँह की भीड़ में एक , अनेक? रोज़ का किस्सा? भीड़ का हिस्सा? मुझे दिखता है ….! मैं अब कहाँ हूँ! आप भी अब देखिए!

अँधे आसमाँ 2

पूरा अधूरा पूरा ही अधूरा हूँ अपना ही धतूरा हूँ सरचढ़ गया तो प्यारा हूँ उतरा तो बेचारा हूँ ताकत है हाथों में इरादों में , नज़र नहीं आती , खुद को भी दिखानी पड़ती है सामने रहें वो लकीरें , बनानी पड़ती हैं , तस्वीरें बनती नहीं ठीक से , मिटानी पड़ती हैं !

ग़ूम, गुमां, गुमनाम!

तमाम मसलें हैं किस-किस को बयां करें, नज़र खुद पर, क्यॊं और क्या गुमां करें ! दर्द अपना है, या कोई भुला हुआ सपना है , आप नहीं समझेंगे आपको अभी चखना है!  कुछ इस तरह से अपनी पहचान होती है , तस्वीरॊं से हकीकतें कुछ गुमनाम होती हैं ! तमाम खेल जिंदगी के हमने भी खेले हैं, सफ़र ज़ारी है, और भरते हुए झोले हैं! ताक लगाये बैठे हैं सब कि कब मामूली होगे, आप कहिये अब इस दुनिया से कैसे निभायें! फ़ुर्सत से बैठे कि फ़ुर्सत कब मिले, बड़ी तस्सली से अब इंतेज़ार चले! खबर हो न हो, मुस्तैद अपनी नज़र है, देखें किस मोड़ आज आपका सफ़र् है हमारा खुदा कोई नहीं, हम फिर भी दुआ करते हैं, मर्ज़ खोजेंगे किसी दिन, चलो पहले दवा करते हैं!

कामयाबी

कामयाबी पैरों में बंधी एक जंजीर है, कैद करती एक तस्वीर है अपेक्षाओं की लक्ष्मण रेखा आकांक्षाओं का रुख करी हवा एक का सवा, निन्यानवे का फेर, कहीं कुछ, अगर-मगर, सवालों के ढेर, ऊंचाई पर नजर,   नीचे होती जमीं, अब कामयाबी आपके सर लदा सामान है कहीं खो ना जाये इसी में अटकी जान है देर सबेर या शायद अंधेर, पक्के इरादे? चट्टान हो सकते है पर मुसाफिर और मेहमान नहीं, जायके आदत बन जाएँ तो असर नहीं होते तय रास्तों पर सफर नहीं होते कामयाबी को दूसरे रास्ते नजर नहीं होते गलियां कभी दिखती नहीं मोड़ अनजाने होते है जो खोज में निकले वो फितरत, दीवाने होते हैं आप अगर कामयाब हैं तो आपका रास्ता तय है उस पर आगे जय है उसके बगैर कुछ भी और भय है, आगे आपकी मर्ज़ी आपको कामयाबी कबुल है या जिंदगी की गत बदलना आपका उसूल है!