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उम्दा सफ़र!

  बड़े उम्दा से ये सफ़र रहे हैं, कुछ ऐसे अपने गुज़र रहे हैं! मुश्किल बस एक नज़रिया है, कुछ ऐसे अपने हश्र रहे हैं!! कौन नहीं हैं यहां गुनहगार? पर कहां अपने कोई जिक्र रहे हैं! सब कुछ मुमकिन हैं सुनते हैं, यूं जो दुनिया बदल रहे हैं! शराफत मजहब हुई जाती है, कुछ ऐसे उनके फक्र रहे हैं! उसूल ऐसे की जंग मुमकिन है, पर ऐसे हम कुछ लचर रहे हैं! दुनिया रास नहीं आती फिर भी, कुछ ऐसे अपने बसर रहे हैं! सब हो जायेंगे इंसान एक दिन, पर हम कहां इतना ठहर रहे हैं! कामयाबी की गुलामी नशा है, कुछ ऐसे ही सब बहक रहे हैं! अज्ञात हैं, रिश्ते फिर भी कायम से, कुछ ऐसे अपने असर रहे हैं!