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मूरख हम–तुम!

कुछ ऐसी सुबह थी,  बेवजह थी बस होने के लिए न कोई डर, न फिकर, निकल पड़े बादल, कोहरा कब्जा करने! मर्द कहीं के! सदियों के अनुभव क्यों अकल नहीं बनते? जो विरासत में मिली वो नकल क्यों बनते? सुबह ढकी हुई है, सूरज सफेद है, फिर भी कोई कमी नहीं उनको, अपने रास्ते चल रहे हैं, जाने और आने में फर्क कहां है, वही जगह है, सब आपकी नजर कहां है? सब कुछ शांत, निश्चल, पाक – साफ़ जब तक हम काम नहीं बनते, एक दूसरे के लिए सामान नहीं बनते, घटते–बढ़ते, कम –ज्यादा! पेड़, पौधे, रास्ते ओस, जाले, सब बेवजह हैं, उनको उनका होना  मुकम्मल है! ये बस इंसान है मुरख जिसको आज– कल है!

देख - ए लुक!

इंसान देख बहुत सारा मकान देख, जंगल बन गए दुकान देख, सीढियां कहाँ तक ले जाएगी? बना और, और थोड़ी, और देख, जंगल घरों के देख, हर तरह के,  हर रंग में ढंग में बेढंग में, कोई छोटे, कोई बड़े कुछ शोर करते  आंखों में, देख देख, कुछ चुपचाप, विनम्र, कुछ ताड़ की तरह, कुछ बौने सबके सामने, उम्मीद देख, अरमान देख, अना ओ अभिमान देख, शान देख, जीजान लगा दी, जीवन की कमाई देख? देख क्यों? किसलिए? इस सब की जरूरत देख, जरूरत की व्यथा देख, देख, सोच अन्यथा देख, छूटा भरोसा देख, झूठा दिलासा देख, दिल बहलाने को , ग़ालिब ये घर देख! देख इंसान बस, इंसानियत मत देख! डर देख,  अगर देख, मगर देख, बाजार का कहर देख, बिकने को तैयार, बेचने को तैयार, कौन है ख़रीददार देख? बादल देख, बारिश देख, कुदरत की गुजारिश देख, क़ायनात की नवाज़िश, देख सकता है तो देख, शहर बना कर,  बढ़े बड़े घर बना,  कहाँ पहुंच रहे हैं देख? इतनी तरक्की की है, चाँद वाली, मार्स वाली, गति देख, गत देख? जहां जा रहे है उस कल की सूरत देख? अभी भी वही लड़ाई है, अभी भी जीतना है? वही पुराना डर, कोई न बैठे हमारे सर? देख देख देख, मान सके तो मान मूरख, अपने को कमजोर...

सबका विकास, अकल का अवकाश!

सब बडा है,  सभ्यता, तरक्की, घमंड  और बड़बोलापन,  इंसान आज  घुट्ने टेके खडा है! चाँद तक पहुँच है,  दिमाग की समझ है,  सूरज की बिजली,  जमीन से तेल,  तेज़ रफ़्तार सब,  और अब? हर तरफ़ जंग है,  सोच इतनी तंग है,  किसी को पीछे छोड देना,  कामयाबी है!  नज़र नहीं आती,  चारों तरफ़ बरबादी है! आईने  दिखा देंगे सच,  आप नकाब तो हटाईए,  आप पूरे हैं,  और क्या चाहिए? सुनिए, खुद को, गौर से,  दूर हो,  दुनिया के शोर से,  आप किसी की राय नहीं हैं,  उदासी को निराश न करो,  अकेलापन, अधूरा मन,  सुन,  आपको दोषी नहीं ठहराता!

बचे बच्चे!

बच्चे मन के सच्चे, 'बड़े' कान के कच्चे, मज़हब ढोंग दिखावा, भारत भाग विधाता!   कहने की बात की बच्चों में भगवान है, सच्चाई ये की आधे-अधूरे इंसान हैं!   वो तोड़ते पत्थर धूल से लथपथ कर, आप तालियां बजाइए चाँद की यात्रा पर! बच्चे हमारा भविष्य हैं, कहावत है, लाखों भूखे-नंगे है किसकी ज़हालत है!?    कचरे में चुनते हैं धड़कन ज़िंदा बच्चे, मुर्दा बचपन! बच्चे सब को प्यारे हैं, फिर क्यों? अनगिनत बेचारे हैं!? बच्चों के लिए सबको बड़ा प्यार है, इस प्यार के लाखों बड़े गुनहगार हैं! 'अपने ही'बच्चों को सब ज़ख्म देते हैं! फिर भी हम अपनों की कसम लेते हैं? अगर एक भी बच्चा भूखा है, तो देशभक्ति का इरादा झूठा है!

और आप बडे?

बस इतने ही हम हैं! और आप? कहते हो ज़रा गहरा जाओ? गहराई डुबोती है, सतह सुरक्षित होती है, तारीख गवाह है, लाखों भूखे बेपनाह हैं,  तीर मार लिया,  आपने - पुर्वजों? दिन पे दिन खत्म होती जमीं  कितनी नस्लें,  ये ही तरक्की है,  जिसका एहसान जताते हैं? फ़ुटपाथ पर भीख मांगते बच्चे क्या बताते हैं?

मानवता की जय!

, आज एक सुबह देखी, धुंधली, सिकुड़ी, सिमटी, इंसान की सूरज पर विजय देखी, अहंकार की जय देखी, ताकत की शय देखी!! सीमेंट के दैत्याकार पिंजडे में कैद सुबह, मुट्ठी में बंद, चंद दरख्तों में सांस लेती, इंसान के पैरों में, अपनी AC रातों से रात गई टीवी की बातों से, और एक लड़ाई की तैयारी, अपनों से, अपनों के लिए, बाज़ार से ख़रीदे सपनों के लिये! और उस सब से पहले, चंद लम्हों के लिए सुबह का जायका लेने, 2-मिनिट प्राणायाम, हँसने का व्यायाम, देवी को प्रणाम, दिन भर छुरी चलाने, शुरुआत राम राम! किसको फर्क पड़ता है, अपना मतलब निकल गया, बाकी सुबह भाड़ में जाए चाहे धुआं खाए, चाहे धूल उसकी औकात क्या, कल तो फिर आएगी, हमारी गुलाम जो है! हमने असीमित जंगल जमीन किए हैं, इरादे आसमान, हर किसी पर जीत यही है हमारी सभ्यता की पहचान! हम अजेय हैं, हमने स्वर्ग बनाए हैं, वो भी वातानकुलित! नरक भी हमारे तमाम हैं, हम ही तो भगवान हैं!! मानवता की जय!!