आज सुबह फिर बोलती मिली, पूछ रही थी हाल, कर के आसमान, गुलाबी लाल, क्या कमाल, सुबह एक खोई करवट, उसका क्या मलाल, और फिर एक चिड़िया, बनकर, रात, चहचहाती मिली, अंधरों में धुली, खिली, खुली, सबको सुलाते, सहलाते, सपनों में, झुलाते, थकी नहीं, रात, सुबह के साथ, खेलने को तैयार, दोनों के बीच कितना प्यार, दुलार! और आप हम क्यों परेशां हैं?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।