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निर्माण गीत a Mary Oliver poem

गरम मौसम कि एक सुबह,  बैठ, एक टीले के नीचे एक जगह,  मैं सोच रही था ‘ईश्वर’! समय सदुपयोग के लिए  एक अच्छी वज़ह!! नज़र आया एक मात्र कीड़ा,  टीले की रेत को सरकाती इधर-उधर, लुढक-पुढक,  भरपूर जोश,  विनम्र सोच! उम्मीद है ये हरदम ऐसा ही रहेगी, (यही दमखम) हम में से हर एक  अपने रास्ते चलते इस जग को रचते!

सब हमसफ़र!

ये एक सुबह थी,  कोई एक वजह थी, सब मौजूद दे, ठीक वहीं,  जहां उनकी जरूरत थी, उनको भी, वहां ही होना था, उनकी भी एक वजह थी! रास्ते में सब हमसफ़र हैं! आप क्यों अकेले हैं? हर ओर मेले हैं, ज़िंदगी के ज़िंदगी को आप क्यों रुके हैं? दो कदम चलिए! ज़िंदगी हमसफ़र है!

सुबह के सच!

आज सुबह की यूँ शुरुवात हुई अकेले थे दोनों खूब बात हुई! यूँ ही सुबह से मुलाक़ात हुई, मुस्करा दिए दोनों ये सौगात हुई! और भी थे इस सुबह के मुसाफिर, अकेले कहाँ कायनात साथ हुई! वो भी अपने पुरे जोश में निकाला खामोश थे दोनों बहुत बात हुई, यूँ आज सुबह की हालात हुई,, एक पल में अजनबी वो रात हुई!! हर एक लम्हे की कई दास्ताँ थीं, बदलते रंगों से ज़िन्दगी आबाद हुई!

दाखिले!

निकले हैं सफर को झोली भर के चल मुमकिन है सेहरा में कोई प्यास मिले ! मुतमईन है सब अपनी जोड़ तोड़ में अपने ही हाथों सब को वनवास मिले अपने साथ के लिये तन्हाई नहीं लगती खो जाये भीड़ में वो एहसास मिले जिंदगी भर साथ, सिर्फ जिंदगी देती है उतना ही दीजिए जितना रास मिले दुआओं की क्या जरुरत जो आपका साथ मिले  उम्मीद चाँद की और पूरी कायनात मिले  दिलोदिमाग मिले तो इस अंदाज़ से मिले एक कतरा अश्क का एक संजीदा बयां मिले जिधर से गुजरे एक कारवां बना चले   आज ये रास्ता उदास मिले