चलो फ़िर एक साल हो गया पेड़ से टूटा जैसे कोई छाल किसी के हाथों इस्तेमाल कौन सी बड़ी बात है जैसे चल पड़ी कोई अटकी हुई रात है , या मुँह मांगी सौगात है चल दिये उठ कर जैसे कुछ खत्म हो गया जख्म किसका था फ़क़्त एक निशां हो गया तमाम उम्मीदें , चंद हालात , और बिखरे पल चलने को तैयार एक और झोला हो गया ! लम्हे अधुरे रह गये उनका क्या कीजे काबिल कश्तियों को तिनका का दीजे , बाकी सब ठीक है यारब मेरे , मनमर्ज़ी कायनात को पैजामा का कीजे ! दिन बदलने से तारीख़ नहीं बदलती , करवट लेने से तासीर नही बदलती , मंशा , ज़ज्बा , और तमाम कोशिशें गिनती से कोई तामीर नहीं बदलती ! भेड़चाल है, फ़िर क्यों सवाल है, मुबारक हो आपको नया साल है!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।