एक बदन हैं बस, दो स्तन हैं बस, रास्ते पड़े हैं बस आपके भरोसे हैं बस! ज़रा आंख फेर लो ज़रा हाथ फेर लो ज़रा अकेले में घेर लो, ज़रा नोच-खसोट लो! कुछ ज्यादा ही नखरे हैं, कुछ ज्यादा ही मुकरे है, कुछ ज्यादा ही हंसती है, आख़िर क्या इनकी हस्ती है? "न" कहा तो हाँ है, कुछ न कहा तो हाँ है, जो भी कहा वो हाँ है, "न"का हक कहाँ है? बेवज़ह हंसी होगी इसलिए, कपड़े कम है इसलिए, अकेले निकली है इसलिए, ये शोर इतना किसलिए? बहुत पर निकल आए हैं, बहुत कमर मटकाए है, बहुत आगे ये जाए है, कोई तो सबक सिखाए है!! कुछ तो किया होगा? बिन चिंगारी धुआँ होगा? मर्द से कंट्रोल न हुआ होगा? इज़्जत गई अब क्या होगा? घर बिठा के रखिए, अंगूठे नीचे दबा रखिए, पहले अपनी जगह रखिए, चाहे कोई वज़ह रखिए ! ये मर्द नज़र है, यही नज़रिया भी, ज़ोर लगाना है ताकत का, बस यही एक ज़रिया भी (एक नज़दीकी के साथ ट्रेन में जब वो सो रहीं थी एक मर्द ने छेड़खानी की, गलत तरीके से छुआ, अपने शरीर के अंगों को प्रदर्शन किया! ये कोई खास बात नहीं है, आम बात है।पर उसके बाद क्या हुआ अक्सर नहीं होता।...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।