सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

Lahore लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

और लाहौर!

यूँ नज़र आये खुद को इन दिनों, अपने ही बड़े काम आये! यूँ मिले अजनबियों से इन दिनों, अब अपनों में उनका नाम आये! यूँ सपनों को संवारे हैं इन दिनों, अपनी हकीकतों को रास आये! इल्म था, एहसास था, अब खबर है, अब के बार जो वहाँ घूम आये! यूँ गले लगाये कि हम तारीख हैं, हम में जो उनको अपने नज़र आये! दिल में थी, जगह उनके, ज़हन में थी हमारे यकीं को रास्ते नज़र आये! नफ़रते तो यहाँ भी तमाम पलती हैं, क्यों उनके गैहूँ में नज़र घुन आये?

लाहौर की ओर

सरहदों का काम रास्ते दिखाना है, रास्ते फ़क्त कमबख्त इन्सां आते हैं! जो सरहदें रोकती हैं वो इंसा को कम करती हैं, चलिए उस और भी कुछ नेक इरादे कर लें! मुसाफिर जब चलते हैं, रास्तों के दिल पिघलते हैं!  यूँ उम्र से कहाँ कोई जवान होता है वो जो आपके पैरों का निशाँ होता है! सरहद सीमा हो जाए तो मुश्किल होगी, हद हो गयी इंसाँ होने की तो क्या इंसाँ?? अपने इरादों से चलिए रुकिये, लकीरों के राम क्यों बनिये?    रास्ते चलते हैं और हम मुसाफिर, सर जो छत उसकी कोई जात नहीं ! आज इस ओर हैं कल उस ओर, जोर के इरादे, क्या इरादों का ज़ोर उम्र भर सफ़र है दो कदम और सही, यूँ भी इंसाँ हुआ करते हैं!  सरहदें ज़हन की दीवारें बनती हैं, वरना दो इंसाँ मुस्करा के बस मिलें! (लाहौर के सफ़र की तैयारी करते हुए साहिल पर मिले चंद ज़जबात)