साहेब साहिल (नौजवान, दोस्त) ने पूछा, "सीखने के सफर में गलतियां क्या होतीं हैं? ... --- फिर आप कहेंगे कि, गलतियाँ क्या होती हैं? तो, मेरे हिसाब से जब मैं कुछ करूँ और उसका मुझे बहुत पछतावा ओर अफसोस हो वो गलती ही लगती है।" (और हम बह गए, सोचा थोड़ा और बहुत कुछ कह गए!) जबाव का बिन बेसब्री इंतज़ार करें, अपनी सोच को ज़रा कम घुड़सवार करें, लगाम थामें रहिए अपने अफसोस कि! आदत नहीं अच्छी, भाषा दोष की, जितनी अपने में देखेंगे उतनी दूसरों में नज़र आएगी। आपकी सोच, आपकी बोली, तराजू बन जाएगी! गलती किस से नहीं होती? आप क्या खास हैं? खाते कोई स्पेशल विदेशी घाँस हैं? गलती हुई है तो सुधार लीजे (किसी ने रोका है क्या?) कभी ख़ुद से कभी उनसे माफ़ लीजे! पछतावा, अफसोस, पछतावा, कोई समझाए, दे कोई दिलासा वादे इरादे उमीदें कसमें, ख़ुद ही अपने जाल में फंस के कौन सा तीर मार लेंगे? अगर नहीं पहुंचे जहां जाना है, तो क्यों बहाना है? क्यों पछताना है? लगता है आप वक़्त के धनी हैं, सोचते रहने की आपसे खूब बनी है! अगर...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।