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मुसाफ़िर, मेहमान, मेज़बान

मुसाफ़िर भी हैं,  मेहमान भी, और हम ही मेज़बान भी! समंदर को देखिए, दो लम्हे साथ, नज़र आएगा बहुत, समझ जाएगी बात!! एक एक बूंद की मेजबानी, अनगिनत जीवन को रवानी,  हवा ओ पानी, कहाँ कोई शिकवा, शिकायत? जब मर्ज़ी, आईए समा जाईए! लहरों के संग संग सफ़र, मंज़िल से बेखबर, चलने पर नज़र,  कहाँ कोई घर,  साथ बहुत कुछ, ओ सब हमसफ़र, वही नज़रिया, वही असर! साहिल के मेहरबान, हर लहर संदेश,  दो पल के मेहमान, सब चल रहा है, या बदल रहा है! हर घड़ी, पंछी को  पूछिए,  या सीप को! रेत- रेत ये विज्ञान! मुसाफ़िर,  मेहमान, मेज़बान अलग अलग हैं? या सच्चाई के अनेक नाम?