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रास्तों से वास्ते!

  रास्तों से बातें, या बातें करते रास्ते? रास्ते- कहां हो, कहां जा रहे हो,  किसके वास्ते? भाग क्यों रहे हो, जरा आस्ते-आस्ते! बदल रहे हो या बस चल रहे हो? भीड़ में अकेले और अकेलेपन की भीड़? क्यों मुड़ती जा रही है रीढ़? मैं- और तुम कहां चल रहे हो? ढल रहे हो, पिघल रहे हो, खड़े खड़े, या बैठे-बैठे, या लेटे, कहीं जाते नहीं दिखते, फिर क्यों गुम हो रहे हो? नीयत है या नियत? कैसे भरोसा करें तुम्हारा, न कोई ठौर है, न ठिकाना, न कोई आना-जाना रास्ते - हम साथ है, ठहरे को ठहराव, चलते को सर आंखों लेते हैं, एक साथ दोनों काम कर लेते हैं, हम कदम नहीं गिनते, न मुसाफ़िर चुनते, हम हैं ही कहां? हम चलने से बनते हैं, जहां कोई नहीं चलता, वहां रास्ता नहीं मिलता! क्या अकेले होने से  कोई इंसान बनता है? रास्ते - हम साथ है, ठहरे को ठहराव, चलते को सर आंखों लेते हैं, एक साथ दोनों काम कर लेते हैं, हम कदम नहीं गिनते, न मुसाफ़िर चुनते, हम हैं ही कहां? हम चलने से बनते हैं, जहां कोई नहीं चलता, वहां रास्ता नहीं मिलता! क्या अकेले होने से  कोई इंसान बनता है?

तीन कदम

गुम हो, गुमसुम हो, रास्ते नहीं मिलते कदम हिचक रहे हैं इरादे खामोश हैं ये कौन मंजिल है? ये क्या हासिल हैं? क्यों मझधार साहिल है, कहां जाएं? पहला कदम! मान जाएं, हवा, पानी,  फूल पत्ते, हरियाली, नील गगन सूरज के आते-जाते अदभुत रंग, आपके लिए है, दुनिया इस ढंग दूसरा कदम, जान जाइए, आप मिट्टी से जुड़े हैं ठीक उसी तरह,  जैसे हर जीवन, सब की यहीं जड़ें हैं, हर एक अधूरा है, मिलकर सब पूरा है, कोई कम नहीं, किसी से, किसी वजह से, किसी भी, तो अब जब चल दिए हैं, पहला कदम, दूसरा भी तीसरा कदम, पहचान जाइए, रास्ते चलने से बनते हैं, चलते चलते रास्ते बनते हैं। चलिए आप अपने सफर, फिर कहीं मिलते हैं!

रास्ते कहिन!

  रास्ते हैं, जिंदगी से यही अपने वास्ते हैं, कहां पहुंचेंगे, ये सवाल बेमानी है, मोड़ आयेंगे,  मुड़ जाइए, कभी भटक जाएंगे कभी खो जायेंगे, ढूंढने आपको रास्ते ही आयेंगे रास्ते आपको कम नहीं करते, न ही साथ छोड़ते, कभी लड़खड़ाए, कभी छिल गए घुटने रास्ते बस कह रहे रुकने, संभलने, जरूरत समझ बदलने! भागते क्यों हैं? करिए अपने कदमों का यकीं!

एक अरसे बाद!

फिर एक सफ़र मिले, सरफिरे निकल पड़े, देखें ऊंट किस करवट पड़े! कुछ पुराने, कुछ नए, नाक मुंह परदे लिए, अलग सच या सच से अलग, देखें क्या रास्ते मिले! एयरपोर्ट लाउंज, हवाई सफर, महामारी क्या फ़र्क क्या असर, भीड़ कम है, पर शायद रीढ़ भी! दो के बीच की दूरी, जरूरी...मजबूरी? कुछ ऐसे बंट गए हैं, छुटे हुए और, छट गए हैं! सच्चाई वर्चुअल हो गयी, रोटी कपड़ा मकान, और जरूरी स्मार्ट फोन, जिनके पैर जमीन नहीं, उनको आसमान भी नहीं? बच्चों की पढ़ाई, जैसे कोई जंग, लड़ाई, कैसी ये तरक्की आई, गहरी और हाशिए की खाई! (18 महीने बाद पहली बार एक लंबे सफर को निकलने पर कुछ ख़्याल)

एक एक कदम!

हर कदम  पूरा सफर है, उसके बिना  अधूरा सफर है, पहला कदम  शरुवात है, पूरी, दू सरा,  इरादों की मंजूरी, तीसरा, नीयत जरूरी, और एक कदम, काबिलियत और एक कदम तैयारी, जज़्बा, हिम्मत, कुव्वत, शौक, पूरा होश, और जोश, एक और, और एक, साबित कदमी कुछ और यकीन, और, कुछ मोड़ आख़िरकार  सामने नज़र, चंद और कदम और चार कदम जरूरी, तीन कोस दूरी, दो बातें अधूरी, एक होती जिस्म और रूह , अंत है या शुरुवात, फिर किसने रोक रखा है? बस एक कदम  पूरा करिए, सामने है, दूरी पूरी करिए, बस एक कदम, वो ही सफर है, वो ही दूरी, वो ही जरूरी, बात उसी से पूरी, बाकी सब बातें हैं अधूरी!

कुछ और सफ़र!

a एक और सफर एक और डगर एक और नज़र एक और असर! एक और सुबह, एक और दोपहर, जी भर के किए, फिर कुछ और कसर? ख़ूब नज़ारे, वक्त ख़ूब गुजारे, रह रह के इशारे, क्या है जो पुकारे? बहुत दूर आ गए, कहीं!? बहुत नजदीक आ गए, कहीं!? अगर यही है ज़मीं? फिर क्या है कमीं? क्या छूट नहीं सकता? क्या छोड़ नहीं सकते? क्या जुटा नहीं है अभी? क्या जोड़ नहीं सकते? वो भी हम थे ये भी हम हैं, बहुत ज्यादा थे वहां, यहां थोड़े कम हो गए, फुर्सत से बैठे और हम हो गए!! वहां खुद से शिकायत थी, यहां खुद से गुजारिश है, जो मर्ज़ी है अपनी, वो हो अपनी नवाज़िश है! आगे और भी जाना है? ये कैसा बहाना है? कुछ खो गया है कहीं? या कुछ और गवाना है? हाँ! सफ़र और भी है! डगर और भी हैं, नज़रिया एक यही है, अभी असर और भी हैं, जी तर गया ये सोच, अभी कसर और भी है!!

सुबह सवाल!

जो हाथ में नहीं वो साथ क्यों मुश्किल छोड़ना ये बात क्यों? क्यों कहते हैं रास्ते साथ नहीं, रास्ते चलते हैं और आप नहीं? सवाल क्यों शिकार बन रहे हैं? जवाब क्यों हिसाब बन गए हैं? बात अपनी ही अपने से करिए, आप ही रस्ता, अपना यकीं करिए!! जो पुराना नहीं क्या वो नया है? क्या जुड़ा ओ क्या खो गया है? आपके कदमों में रास्ते छुपे हैं, क्या आप अपनी ज़मीं से जुड़े हैं? सफ़र में दर्द भी और गर्त भी, नए मोड़ और हमसफ़र भी! क्यों अपने ही इरादों से लड़ते हैं? ग़ुमराह हक़ीकत, आगे चलते हैं!

ज़ाहिर बात!

हमसे ही हमारी बात करते हैं, हम भी उनसे ये शिकायत करते हैं! हम नहीं जज़्बात ज़ाहिर करते, वो हमसे यही हिदायत करते हैं! नींद ही ऐसी के बिछड़ जाते हैं, और वो सपनों की बात करते हैं! काम, नाम, आराम सब साथ है, झग़डे, तो हम मशवरात करते हैं! लंबा सफर है, हो चला और बाकी हम कहां मंज़िल की बात करते हैं! अकेले भी दोनों अच्छे खासे हैं! साथ में तो हम कमालात करते हैं!! अरसा हुआ अब सारे एब ज़ाहिर, उम्मीद से रोज़ मुलाक़ात करते हैं! एक हैं पर एक जैसे नहीं, फ़र्क, हमें समझदार करते हैं

रास्ते अनकहे!

रास्ते, चलते हुए, यहां-वहां जहां-तहां हर ओर से निकलते हुए, हर लम्हा, एक एक पल हमसफ़र बनने तैयार, आप कहाँ अकेले हैं? सफ़र में? "ट्रस्ट द प्रोसेस" रास्ते किसी को रोकते नहीं, कभी टोकते नहीं, 'नज़र नहीं आते?' आप कदम क्यों नहीं उठाते, फिर कहिए, क्यों? मेरे पैरों के नीचे नहीं आते? क्यों अपने शक आज़माते हैं? शक नए रास्तों से घबराते हैं! अपने कदमों को अपना यकीन कीजे, आसमाँ-अरमान को जमीन कीजे, मुमकिन? .....सफ़र में Swati साथ☺️

कुछ याद सा!

पास है मेरे पर खो गया है! क्यूँ आज ऐसा हो गया है!! दूर है पर महसूस करती हूँ! क्यों मैं ये अफसोस करती हूँ!! अपना था और अपना ही रहा! हक़ीकत, अब सपना सा रहा!! भूलने को तो कुछ भी नहीं! एक साथ था अब याद सा रहा!! आवाज़ अब भी मेरे कानों में है! फिर क्यों सोचूं क्यूँ गुम सा है!! मेरी हँसी थोड़ी अकेली पड़ गई! खिलखिलाहट का मज़ा कम सा है!! उम्मीद, हिम्मत, कोशिश सिखाई! बहुत है फ़िर भी ज़रा कम सा है!! मेरा बचपन ओ जवानी भी था! वो अक्सर मेरी कहानी सा था!! चल पड़ी हूँ अपने रास्तों पर मैं! हर मोड़ कुछ अकेलापन सा है!!

छियानवे बाईसी

बात तारीख की नहीं तारीख़ी की है, गौर कीजिए ज़रा बारीख़ी की है। साल छियानवे, महीना जून, मुकाम अहमदाबाद, अकेले थे 'हम' चन्द मुसाफिरों के साथ, थी पहली मुलाकात, हम तब भी रिश्तों के ज़ाहिल थे, और वो तब भी रिश्तों के क़ाबिल! फिर भी कुछ सुर मिल गए, कुछ ताल जम गई, और कुछ बाल रंग गए! वो दुनिया के अकेले थे, हम दुनिया के अजूबे, अलग रास्तों पर चलने के शौकीन, मुसाफिरी तो उसी वक्त शरू हुई, फिर धीरे धीरे रास्ते एक हुए, और हमसफ़र नेक हुए! बाइसों बाते हैं, चौबीस घँटे का साथ है घर की बात नहीं, काम की बात है, काम भी साथ है, अब हम ही मुश्किल हैं, एक दूजे को, ओ हम ही आसान भी, उलझन भी हम ही हैं, सुकूँ भी! सफ़र ज़ारी है, मंज़िलों के हम दोनों ही गुनहगार हैं, रास्तों के तलबगार! और अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें! अपनी राय और हमारी चाय में फर्क करें!

पास समंदर!

 पास समंदर  और दूर तक, साथ भी ओ अपने आप भी, मिले भी ओ अंजान भी, पहचान हुई, बस नाम की, किनारे ज़रा तर लिए, चुल्लू भर लम्हे लिए, आए ओ गुज़र लिए, ठहरना क्या है? क्यों है? सफ़र भी घर है, रास्ते कभी, किसी को रोकते नहीं!! चलिए, बह लीजिए!

क़ाबिल सनम

ख़ुद से इंकार तो नहीं है, फिर भी, ये कब कहा कि हमको हम चाहिए? कोई दावत नहीं है दुनिया के गम को, ओ ये भी नहीं कहते के कम चाहिए! इंसानियत तमाशा नहीं है बाज़ार का, क्यों गुजारिश के आंखे नम चाहिए? इरादे आसमान पहुंच जाते हैं, तय बात! मुग़ालता है के बाजुओं में दम चाहिए! भगवान के नाम पर तमाम काम हैं, इंसान को ज़िम्मेदारी ज़रा कम चाहिए! कोई अलग है तो वो उन्हें नामंज़ूर है, सरपरस्तों को मुल्क नहीं हरम चाहिए! ताक़त से अपनी सब सच कर डालेंगे, इंसाफ़ नहीं फ़क्त उसका भरम चाहिए! क़ुबूल है कहने वालों की कीमत बड़ी, उनको कहाँ क़ाबिल सनम चाहिए? तमाम हैं हम फ़िर भी अकेले हैं, कारवाँ होने को दूरी कम चाहिए! उम्मीद जिंदा भी है और होश भी, कोई कह दे बस के हम चाहिए!