कौन कहता मर्दों को दर्द नहीं होता , हम बस बयाँ नहीं करते , पैरों के बीच , ... वो . . . मतलब . . . यानि . . . न न , दिल में छुपा रखते हैं , खुद ही दारु - दवा करते हैं , थोड़े अंधेरों को हवा करते हैं , पर क्या करें ये खुजली कि बीमारी है , आप तो समझते ही होंगे , ( मतलब देखेते ही होंगे ) क्या करें कंट्रोल ही नहीं होती , और लातों के भूत , हाथों से नहीं मानते , अब आप को समझना चाहिये न . . . सामने क्यों आते हैं , सदियों से यही होता आया है , पेड़ , पहाड़ और औरत , इन पर चढ कर ही हम मर्द होते हैं , ये मत समझिये हमें दर्द नहीं होता , अब हम तो मानते हैं , हमसे कंट्रोल ही नहीं होता , और फ़िर हम भेदभाव नहीं करते , 6 महीने की बच्ची , 60 साल की बूढी , स्वस्थ , सुंदर या अंधी - गुंगी , अमीरी से ढकी या गरीबी से नंगी , नोचते वक्त हम रंग नहीं देखते , और देखना क्या है , ज़ाहिर है , प्यार अंधा होता है , और उसी का धंधा होता है , बस सप्लाय कम है , ड़िमांड़ ज्यादा , वैश्वियकरण की नज़र से देखिये समस्या आसान है , ...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।