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ज़रा ज़रा!

जरा सा मुस्कराना उनका नज़रें फ़िराना ज़रा सा ज़रा सी हौंसला आफ़ज़ाई तड़पाना जरा सा जरा सा बल खाना, लड़खड़ाना जरा सा जरा सा छेड़ना, तड़प जाना जरा सा जरा जुल्फ़ों का उड़ना, बिखर जाना जरा सा दिले आबाद का, दिले-बरबाद से फ़र्क जरा सा ज़रा सा एक बड़ाये हाथ, साथ एक दे ज़रा सा मुश्किल नहीं मुसाफ़िर, सफ़र जिंदगी का ज़रा सा ज़रा सी आकांक्षायें और लालच ज़रा सा बहुत है, इंसान का बहक जाना जरा सा ज़रा सा हौसला रखना, हिम्मत ज़रा सी ज़रा सा गम, ज़रा खुशियाँ, ज़िंदगी ज़रा सी ज़रा से उनके सपने हैं ज़रा हमने भी देखे हैं, साथ था, फ़िर भी रात सो लिये ज़रा सा! ज़रा सा जज़्बा चलने का, साथ कुछ दूर तलक ज़रा सी कोशिश किसी मोड़ कोई और फ़लक!

एक और अज्ञात!

अज्ञात है और मेरा मित्र भी, एक कोशिश है एक चित्र भी सामान्य है और विचित्र भी सीमित है पर सीमा नहीं जीवित हैं पर जीना नहीं सब कुछ ठीक है, और सब कुछ बदलना है रास्ता बना नहीं फिर भी चलना है, सपने हकीकत हैं, जो बोले शब्द वो जीवित हैं, अपनी ‘गति’ के समाचार, और खबर बुरी नहीं है, सच्चाई छुरी नहीं है, क्योंकि होता वही है जो तय है, और चाल आपकी, आपकी शय है, मात नज़र की कमजोरी है, उम्मीद कि न दिखे फिर भी डोरी है वैसे भी आँख के सामने गर अँधेरा है, तो हाथों को हवा कीजे, यकीन की दवा कीजे , और मारिये एक छलांग, जमीन से गिरे भी तो कहीं नहीं अटकते, एक दो तीन,...... धड़ाम देखा, न चींटी मरी, न आप , पर तबीयत हरी हो गयी! चलिए अब नए सिरे से सोचें बोलने वाले तो कुछ भी बोलेंगे!

आईये ! / The Invitation!

मुझे मत बताओ कि जिंदगी कैसे कटती है  ये बताओ कि अंदर से आवाज़ क्या आती है, और क्या वो सपने देखने की हिम्मत तुम में है, जो तुम्हें अपने दिल की तड़प तक ले जायें?  मुझे अपनी उम्र कि लंबाई नहीं बताओ, ये कहो कि मुरख बनने का जोखिम उठा सकते हो? प्यार के लिये, सपनॊं के लिये, जिंदगी जीने के रोमांच के लिये!  क्या फ़रक पड़ता है कि तुम्हारे ग्रहॊं की क्या दशा है ये कहो कि, 'अपनी दुखती रग' पर तुम्हारा हाथ है क्या? जिंदगी की ठोकरॊं ने तुम्हे खुलना सिखाया है? या आने वाले जख्मॊं के ड़र से तुम ने अपनी पीठ फ़ेर ली है? जिंदगी से!  जरा ये बताओ कि दर्द को, मेरे या तुम्हारे, बिना कांटे, छांटे, छुपाए, निपटाये, क्या तुम अपने साथ रख सकती हो? जरा सुनूँ, क्या तुम आनंदित हो, मेरे या तुम्हारे लिये! और क्या झुम सकते हो ऎसी दीवानगी से, कि तुम्हारे हाथ-पैर के छोर हो जायें भाव-भिवोर बिन संभले, बिन समझे, बिन जाने, कि इंसा होने कि हदें होती हैं!  तुम जो कहानी मुझे सुना रहे हो वो सच हो न हो, ये कहो कि खुद का सच होने के लिये, क्या किसी और की नाउम्मीदगी बन सकते हो, और अपनी अंतर...