फर्क नहीं पड़ता कोई, कि खुदा एक है या कई, जरा बताओ, दुनिया की चारदीवारी के बीच, तुम घर हो, या न घर के न घाट के? क्या तुम हारना जानते हो, खुद या किसी और के ज़रिये? क्या तुम तैयार हो जीने के लिए, इस दुनिया में, तुमको बदलने, इसकी सख्त जरुरत के बावजूद? क्या तुम पीछे नज़र डाल ये यकीं से बोल सकते हो कि हाँ मैं सही था!? मुझे ये जानना है, कि क्या तुम जानते हो रोजना ज़िन्दगी को झुलसाने वाली, आग में, पानी होकर अपनी हसरतों के चक्र्वात में, कैसे पिघलते हैं? मुझे ये बताओ, क्या तुम तैयार हो, जीने के लिए, हर दिन; रोज़ाना! मोहब्बत के नतीजों से और। और अपनी तय हार से उपजे, तुम्हारे सरसवार कड़वे जुनून से? मैंने सुना है, इस जकड़ती आग़ोश में, भगवान भी खुदा का नाम लेते हैं!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।