सुबह तमाम, पंचगनी आसान, मेज़ जमीं, (table land) मेज़बान बनी, सुबह या शाम, समेट सकते हैं पूरी, आगाज़ भी अंजाम भी, एक ही जगह, न कोशिश, न वज़ह, फ़कत स्थिरता, समझिए, कुछ नहीं, आप! मूर्त हो रहिए, और चारों ओर सब बदलता देखिए इसमें "मैं" कहाँ? गर ये सवाल है? तो अफ़सोस! आप अहं हैं! आपको अपना ख़ासा वहम है! जमीन पर आइए! आप वहीं हैं, आप वही हैं!!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।