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टेबल लैंड!

सुबह तमाम, पंचगनी आसान, मेज़ जमीं, (table land) मेज़बान बनी, सुबह या शाम, समेट सकते हैं पूरी, आगाज़ भी अंजाम भी, एक ही जगह, न कोशिश, न वज़ह, फ़कत स्थिरता, समझिए, कुछ नहीं, आप! मूर्त हो रहिए, और चारों ओर सब बदलता देखिए इसमें "मैं" कहाँ? गर ये सवाल है? तो अफ़सोस! आप अहं हैं! आपको अपना ख़ासा वहम है! जमीन पर आइए! आप वहीं हैं, आप वही हैं!!

कहां जाईए?

कहाँ जाइए? पैरों ज़मीन है, सर आसमान, छत आसरा है, चारदीवारी सहारा, फिर शिकायत क्या, डर क्यों, हर लम्हा बदल रहा है, क्योंकि हवा बह रही है, रगों में खून चल रहा है, मायने हैं ज़िन्दगी के कहीं न कहीं, कुछ न कुछ बदल रहा है! रुकना, ठहरना, स्थिरता किस लिए? के आप समझ पाएं...जाएं चलना ही नियत है, नीयती अच्छा हो आप बनाएं यही नीयत भी! दुनिया चल रही है, एक एक पल, आप रुक कर, कहाँ जाईए? चलिए बताइए? कहाँ जाईए?