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नैतिकता के बाज़ार!

इंसान उद्दण्ड हैं, झूठा सब घमंड है, दुनिया पर वर्चस्व का, नैतिकता, सभ्यता, घटिया मज़ाक हैं, बाज़ार का राज है, और सब बिक रहे हैं, मुंहमांगी कीमत मिले तो आप विजेता हैं, सही कीमत, आंखों पर पर्दा है, आप फिर भी सामान हैं! दर्द न हो  इसलिए मर्द हैं? तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी, एक्सप्रेस हाइवे,  चमकीले साइनबोर्ड, गगनचुंबी इमारतें,  क्या दिखाते हैं,  लॉकडाउन में  क्या छुपाते हैं,  हैरतअंगेज बात,  लाखों सड़क पर  तब कहाँ जाते हैं? चलते नज़र आते हैं,  जब शहर चलता है! सब कुछ ख़त्म नहीं है, कितनों ने हाथ बढ़ाए हैं, कंधे मिलाए हैं, मजबूरी के दर्द, दर्द की मजबूरी आमने सामने हुए साथ आए हैं, हमदिली है, शुक्र है, सब का, गुज़ारिश एक, सवाल एक साथ रखिए, कल हमें ये सब, कहाँ नज़र आएंगे?

सब चंगा सी!

लॉकडाउन चालिसी, दोष तब्लीसी, जिम्मेदारी बदलिसी मूरख पब्लिसी! मुसीबत असलिसी मदद नकलिसी, सब चंगा सी! मजदूर पैदलसी भूखे बेहदसी, नफ़रत निकलिसी, बीमारी चीनीसी, टेस्टिंग कछुए सी, सब चंगा सी! लॉकडाउन चालेसी,  चार बार लागेसी लाख पास आलेसी, सरकार जालीसी, या सोई, आलसी, मूँह में गालीसी, वादे लाखों से नीयत जाली सी सब चंगा सी! हाथ फ़ैले सी झोली खाली सी, भुखी प्यासी.   बेटी रुंआसी, हरसू बदहवासी इतनी उदासी,  सब चंगा सी!

सरकारी सरकार!

सब व्यवस्था सरकारी है, सारा इंतजाम  परदेश से घर लाए जहाज सरकारी थे, और मज़दूर चढ़ नहीं पाए वो बस ट्रेन सरकारी है भूख सरकारी नहीं है, डर और चिंता भी! लोकडाउन सरकारी है, बीमारी सरकारी है!! सड़क सरकारी है, चलने वाले नहीं, मरने वाले रास्ते में अपनी मौत मरे हैं! मरने वालों की लिस्ट सरकारी है, हस्पताल सरकारी है, डॉक्टर नर्स भी, जो शिकायत कर रहे हैं, वो उनकी निज़ी बात है, जिस कमी की बात है, वो कमी सरकारी है, आपसे मतलब? सूचना सरकारी है, जानकारी सरकारी है, उसके अलावा कोई कुछ कहे, तो जेल सरकारी है, पुलिस सरकारी है, उनके डंडे सरकारी हैं, डंडों के निशान आपके, चोट का दर्द आपका, जो गालियां आपने खाईं, वो सिपाही की थीं, पर उनका गुस्सा सरकारी है! कानून सरकारी है, सुप्रीम कोर्ट के जज सरकारी हैं, फैंसले सरकारी हैं, आपको अगर गलत लगें तो, आपकी अपनी राय है, आपकी मन की बात, दो कौड़ी की नहीं, सरकार जो कहे, गलत या सही, वो बात सरकारी है! सरकार माई-बाप है,

कोरोना का रोना!

भूख कहाँ बीमारी है, मजबूरी कैसा रोग है? जोग है पाखंड का और  ताकत मनोरोग है! भूख आग भी है और पानी भी हवा होने वाली चीज़ नहीं, भड़केगी या बह जाएगी एक और ज़माना कर जाएगी! सवाल मत उठाइए, बस मान जाइए, भीड़ में आइए या भाड़ में जाइए! आम आदमी हैं औकात में आइए, माना जाइए या पाकिस्तान जाइए! कहा है तो कुछ सोच कर ही न, काहे दिमाग की बत्ती जलाइए? सच आलसी हैं आपके  या होशियार, ख़बरदार है? या आप बस हाँ में हाँ मिलाते  सवालों के गुनहगार हैं?। एकता की खोखली बात है, अनेकता की लगी वाट है! घर बैठे दिए जलाते हैं क्या ठाठ है, भूखे मजबूर को लाठी लात है! हमारे लिए तो एक वो ही हैं, महान हम जान रहे है आप जान स जाइए! 'चुप रहिए, सर झुका रहिए', सरकार कहे! जिसके भी सवाल हैं बस वो खबरदार रहे!! अंधेरे को देर नहीं और देर को अंधेर है झूठ है जो कहते कि अब भी देर-सबेर है! नफ़रत की ज़िहाद छेड़ी है  हिंदुत्व ठेकेदारों ने, बस भक्ति, श्रद्धा से  कब इनका काम चला है !

तालाबंदी 2 बनाम मौत का फरमान!

ज़िंदगी से मिलने को ताउम्र चला है, बिना चले कब उसका काम चला है? रास्तों में रोक दिया है जिंदगी को, किसको बचाने का इंतज़ाम चला है? मुट्ठी दो मुट्ठी चावल थमा देते हैं, खैरात हो जैसे ये काम चला है? घर बैठे भक्ति से हुक्म बजा लाते हैं, बिन सोचे समझे सब काम चला है? चकित हैं मजदूरों की बेशुमार भीड़ से, पढ़ा-लिखा मुल्क क्यों हैरान चला है? किसी की मजबूरी को मज़हब बना दिया, कैसा इन दिनों खबरों का निज़ाम चला है? वो काम बोले जो चुटकी बजाते हो गए, ध्यान बटाने से बाज़ीगर का नाम चला है! मजदूरों को मरने का काम मिला है, लॉकडाउन में ये असल काम चला है! भूख प्यास मजबूरी का लंबा सिलसिला है, बिन काम कैसे मजदूरों का काम चला है! डॉक्टर भी खा रहे हैं मार, गुस्से ओ नफरत की? कुछ ऐसा सरकार से पैग़ाम चला है? अपना धर्म सनातन, मज़हब उनका जिहादी, किस रास्ते इस दौर का इंसान चला है?

जान है तो पान है!

जान है तो जहान है ये मूर्खता का ज्ञान है, सरकार ने कहा है तो अंधभक्तों का कान है मिडिल क्लास की रट मेरा भारत महान है! ओ रईसों की वाइन है चमक है शाइन है! भूख में क्या शान है? भीख है या दान है? किसका इसमें मान है? न जमीं अपनी, अजनबी आसमान है, सारे मजबूर एक छत में कहते हैं आप, ध्यान है? मुट्ठी भर चावल, दाल कहाँ? न सब्जी का नामोनिशान है? चल पडे हैं मीलों, कोसों, बेदिल आप उनको कोसें? जानिए, मनोविज्ञान है, जो उनका जहान है वो ही उनकी जान है! गांव, घर, परिवार,  गली चौबार, अपना  समाज व्यवहार सब मिल कर जान है? कोई टापू नहीं अकेला एक पूरा इंसान है! भरोसा किस पर करेंगे? काम बचा नहीं, सरकार सोचा नहीं, बंद हैं बस, ट्रेन, कहते है लॉकडाउन है? लाखों सड़क पर, फ्लायओवर सर पर, थोड़ा मिला बहुत समझना कहाँ कोई सम्मान है? हथेली पर जान है, दोगला जहान है, कारों में, बंगलों में ए सी ऑन है!! किसकी जान है? ये कैसा जहान है? क्या आपको तनिक भी इसका भान है? बंजर है जमीन किसकी? किसकी उम्मीद शमशान है?  भीड़ में अकेले ओ सारे रास्ते वी...