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इस दौर!

लाख़ ढूंढे मिलने वाले नहीं, कितने गिरे हैं कुछ इल्म नहीं! कहने और करने में फर्क जो है, ये फांसले कम होने वाले नहीं! बहुत सर चढ़ाया है तारीखों में, गिरेंगे अब, उतरने वाले नहीं! दुश्मनी जो रास आने लगी है, ये नशे, अब जाने वाले नहीं! जो सामने है वही सारा सच है, ये नया कुछ जानने वाले नहीं! नफरतों ने आबाद किया है, तुम बर्बादी अपनी मानने वाले नहीं! अपने ही हैं जो बहक गए हैं, सब वो अब अपना मानने वाले नहीं! उम्र का तकाज़ा देने वाले सब,  मानते हैं, अब जानने वाले नहीं!

सवाल करो_न!!

(कुछ तो सोच लें‌ साथिओं?) खोखली नीयत ढोंग रचेगी, तमाशबीन ताली बजाएंगे!! खो गई है सोचने की कला, भेड़ बन कर भीड़ जाएंगे! (सवाल जरुरी हैं तरक्की के लिए) भिड़ रहे हैं किसी भी सवाल से, जल्दी ही वो भगवान कहलाएंगे!! उनने किया है तो सोच के बहुत, हम काहे अपनी अक्ल लगाएंगे? (बस हां में हां, कुछ सोचा कहां?) श्री राम बोल कर घर जलाएंगे, घर बैठे बैठे थाली चमकाएंगे!! देशभक्ति है घर बैठ जाएंगे, दिहाड़ी वाले आज क्या खाएंगे? (बिना सोचे, बिना समझे निर्णय) काल करे सो आज कर, आज! आज भीड़, कल कर्फ्यू लगाएंगे? सामाजिक दूरी तो हो गई, सुनिए? समझ से दूरी कैसे मिटाएंगे? ( ठेके पर मजदूर, लाखों बेघर और झूठ) जिनका कोई नहीं उनको राम है, भूखे पेट भगवान को प्यारे हो जाएंगे!! थाली पीटने से खत्म वाइरस इस विज्ञान से नई सदी जाएंगे? (बस बड़ी और खोखली बातें) मदारी शातिर हैं इस मुल्क के,  डमरू भी अब जमूरे बजाएंगे!! न काम को जा सकें ने धाम को! युँ हालात से हमको निपटाएंगे? ..