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नीलिमा

दो अंतहीन बादल और उनके बीच नीले आसमान का कतरा इतनी नीलिमा इतनी स्वछंद कोमल और पिघलती कुछ ही लम्हों में घुल जायेगी जैसे कभी थी ही नहीं! वो नीलिमा फ़िर कभी नज़र नहीं आयेगी क्या तुमने उससे रिश्ता नहीं जोड़ा . . .? (जिद्दू क्रष्नमूर्ती की चहलकदमी और उस दौरान आये विचारॊं का काव्यअनुवाद )