क्या आप आज़ाद हैं, या अपनी जंजीरों के बर्बाद! (धर्म के नाम पर तोड़-फ़ोड, हत्या-बलात्कार, आसाराम, राधे मां और तमाम बाबा और स्वामी) कहिये कि कैसे सिर्फ हाँ बन जाएं, बेहतर है इससे कि बेज़ुबाँ बन जाएँ! (आर.टी. आई कार्यकरताओं की सरे-आम हत्याएं) अंधविश्वास विज्ञान है, मेरा भारत महान है! (झारखंड़ में ११ महिलाओं को ड़ायन बोलकर हत्या) आज़ाद हो इसपे शक मत करो, नासमझी गुनाह है इस दौर का? क्यूँ इस तरह आज़ाद हैं, सवालों वाले बर्बाद हैं? सर घुटनों में रखिये तो आप आज़ाद हैं जो सीधे खड़े है उनको हुकूमत सैयाद है (तीस्ता के पीछे बड़ी सरकारी ताकत) आज़ादी कहाँ हैं, ये प्रश्न जहां है! (हज़ारों जनसंघर्ष में लगे कार्यकर्ता) बड़े आज़ाद हैं हुक्मरान सारे, ख़ासी मनमर्ज़ी शौक हैं उनके! (हमारे राजनेता) बड़ी मजबूरी है सबको आज़ाद दिखने की, और ये ड़र कि कहीं ज़ादा आज़ाद न दिखें! ( हम में से कई जो सरकारी / बदमाशी ताकत के सामने भीगी बिल्ली , रिश्वत देते वक्त मजबुर और बाद में गप करते वक्त गुस्सैल और देश भक्ति का नाम लिया तो ५६इंच सीने वाले बन जाते हैं)
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।