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क्या खेल खेलें कश्मीर के बच्चे?

आज बहुत मजबूर हूँ, कश्मीर से बहुत दूर हूँ, जैसे पेड़ खजूर हूँ, याद आ रहे हैं वो दिन, वो लोग जो इंसान थे, हमारी तरह, तुम्हारी तरह एक उम्दा मेज़बान की तरह, साथ हंसते थे, हम परेशान न हो, इसके लिए परेशां रहते थे, जब उनके साथ "खेल से मेल" किया, तो सब वैसे ही हँसे जोर जोर से, जैसे लोग बनारस में हँसे थे, या कंदमाल में, दिल्ली में, पुणे में, जुबा में, येंगॉन में पर उसके बाद जो बात हुई, तब उनके दर्द से मुलाक़ात हुई, "हमारा बचपन अँधेरे को बली था" अब हम अपने बच्चों को हंसाएंगे, वो हमारे शुक्रगुजार हुए, और हम, अपनी नज़रों में ज़रा कम गुनाहगार हुए, कश्मीर भारत को खूबसूरत है, और सारे देशभक्त, उसको कोठे पर बिठाना चाहते हैं, एक जगह है सबके लिए, जहां से डॉलर्स आते हैं, पाउंड, यूरो, और रूपये भी, कौन छोड़ता है ऐसे माल को, हर साल जो नयी हो जाती है, वर्जिन तैयार नथ उतरवाने को, कौन देखता हैं कि वहां इंसान हैं, उनके दिल हैं, उनकी जान है, उनके बच्चे हैं जो सरकार की गोली कुर्बान हैं! सफर ज़ारी था, आने जाने में, कश्मीरी दोस्त हमको लगे जगहों के बारे बताने...