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क्या जानें, कौन माने!!

जो आंखें देखती हैं, वही आंखें दिखती हैं! बात किस की है? ये सवाल किसका है? ये हाल किसका है? यूँ मलाल किसका है? जो देख रहा है, उसे देखते हैं! सच, अलग अलग देखते हैं! एक ही बात कहाँ है, इतना बड़ा जहां हैं? आप कहाँ पहुंचे, और वो रास्ता कहाँ है? मुसाफ़िर कई हों, रास्ते पर, पर सफ़र एक नहीं, असर? अंजाम? नज़र देखती है, नज़रिये से, ये ही ज़रिया है, आपका क्या? कहाँ पहुँचे हैं? पहुँचना कहाँ हैं? किस बात से तय? ओ तय बात क्या है? हूँऊं, ओह, क्या, वाह, अच्छा, शायद, याने, हज़ार ख़याल मन में, क्या जानें, कौन मानें?

क्या बात हुई?

कल तो जैसे रात ही नहीं हुई, आपकी हमारी जो बात नहीं हुई! बात करके बोले कि बात नहीं हुई, क्या बोलें, ये तो कोई बात नहीं हुई! ख़ामोश थे दोनों क्या बात करें, पर कैसे कह दें की बात नहीं हुई! सुनना था उनको सो ख़ामोश थे, शिकायत, 'ये तो कोई बात न हुई'! नज़रें बोलती हैं, अंदाज़ बोलते हैं, कौन कहता है कि बात  नहीं हुई! कहने सुनने को कुछ नहीं रहा, कौन बताए ऐसी क्या बात हुई? आपकी हमारी जो मुलाक़ात नहीं हुई, क्या कोई बात है? कोई बात नहीं हुई! भीड़ बन गया है हर कोई हर जग़ह राय अलग है सो कोई बात नहीं हुई! "मन की बात" अब सियासत है, बड़े बेमन से मन की बात हुई!

अपवादी आवाज़ें

एक और अज़नबी रात सिरहाने खड़ी है, एक और नामुराद दिन मुंह बायें खड़ा है, ना कोई उम्मीद नाउम्मीद हुई है, ना कोई संजीदगी बेगुमां कोई तकलीफ़ अभी तक उदास है, प्यास अभी भी मायुस नही हुई, ना दर्द गुमराह हुए हैं एक हंसी है जो कंहीं अकेली पड़ी है, होँसले बेफ़िकरे खड़े हैं, रास्ते खुद को ही सब्र की दाद देते हैं और मोड़, बेचैनी में बढे हैं, कुलजमां सब वही है, क्या नया हो, जो कुछ गुजरा नहीं है, और क्या पुराना, पहचाने, सब अजनबी हैं कहने को कुछ नहीं है, गालिबन, जो लिखा वो सही है!