सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जे.कृष्णमूर्ती लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

निसर्ग गौरव!

अपने आप में समय को समाये हुए धरा पर हम सब से ज्यादा जीवित दानवी आकार आकाश को असीमित करती हुई उँचाई और प्राकृतिक विविधा का परिचय देती चौड़ाई साथ खड़े रेड़वुड़ वृक्षॊं के बीच अपनी वरिष्ठता का परिचय देती सब के उपर छायी हुयी , और वृक्षॊं को कभी आग ने भी छूआ था पर इसके उपर कोई निशान ही नहीं इतिहास की सारी काली परछाइयॊं के पार कितने युध्ध कितनी ही मानवी बेशर्मियॊं और दुखॊं के परे आकाशी आग को गहे जमीनी आग को सहे कितने आंधी - तुफ़ानॊं को धराशायी कर अनछुयी , राजसी , अलग एकदम अकेली गौरवपुर्ण ! (जे. कृष्णमूर्ति की पर्यावरण सोच से निचोड़ी एक अभिव्यक्ति)

प्रकृति पुरुस्कृत!

वो एक खुबसुरत सुबह सुरज़ की रोशनी से चमकती , और उसी से पुरस्कृत , पास ही में वो बगीचा ,  रंगों से सराबोर  सारे रंग  जिंदगी के और सब रंग उतने ही उद्धंड़ और घास इतनी घनघोर हरित कि आँख और दिल दोनो भर आयें और उन के पार पहाड़ आशा की ओस में नहाये , एकदम तैयार ताज़गी से चमकते हुए चलने को तैयार कितऩी मनमोहक सुबह हर चीज़ सुंदरता से सृजित संकरे पुल के उपर बहती धारा के बीच जंगल के गलियारे में पत्ते किरणों से चंचलित हो रहे थे चंचलता जो उनकी परछाई को भी रोशनी दे रही थी वो सब साधारण पेड़ थे , पर अपनी हरियाली और ताज़गी से उऩ्होनें उन सब पेड़ों को पीछे छोड़ दिया था , जो नीले आकाश को चुनौती देने में व्यस्त थे ! (जे.कृष्णमूर्ती की चहलकदमी से निकली अभिव्यक्ति को पकड़ने की कोशिश)‌

सच से साक्षात्कार।

पेड़ों में खामोश ठंड़क,  और साथ में, कलकलाती कोलाहल धारा, आसमान को जमीं करते पाइन पैरों तले जमीन के एहसास से दुर, पेड़ों पर जीवित मशरुम को खाती , काली गिलहरियां, एक दुसरे के पीछे,  पेड़ के उपर नीचे, टेढे-मेढे रास्तों पर सीधी चलती, और उस पेड़ से फ़ुदकती रोबिन, या शायद रोबिन जैसी, ठंडी खामोशी, और उसे और खामोश करती पहाड़ी बर्फ़ीली धारा, प्यार, स्रजन, और विनाश, सब यहीं मौज़द था संकेत में नहीं , सोच में, एहसास में नहीं सच में, साथ में, हाथ में (जिद्दू क्रष्णमुर्ती के शब्द, मेरी नज़र में)